ध्रुव नारायण गुप्त
बिहार, झारखंडऔर पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक लोकपर्व होता है सतुआन. इसे लोग सतुआ संक्रांति या बिसुआ भी कहते हैं. बिहार के अंग क्षेत्र में यह पर्व ‘टटका बासी’ के नाम से जाना जाता है. कुछ लोग इस दिन के साथ पूजा-पाठ का कर्मकांड भी जोड़ देते हैं, लेकिन सतुआन वस्तुतः आम के पेड़ों पर लगे नए-नए फल और खेतों में चने एवं जौ की नई फसल के स्वागत का उत्सव है. इस दिन इन नई फसलों के लिए सूर्य का आभार प्रकट करने के बाद नवान्न के रूप में आम के नए-नए टिकोरों की चटनी के साथ नए चने और जौ का सत्तू खाया जाता है.
सत्तू भोजपुरिया लोगों का सर्वाधिक प्रिय भोजन है. इसे देशी फ़ास्ट फ़ूड भी कहते हैं. सत्तू चने का हो सकता है, जौ का हो सकता है, मकई का हो सकता है और इन सबके मिश्रण का भी. इसमें नमक मिलाकर, पानी में सानकर कभी भी, कहीं भी, कैसे भी खाया जा सकता है, लेकिन सत्तू खाने का असली मज़ा तब है जब उसके कुछ संगी-साथी भी साथ हों. भोजपुरी में कहावत है- “सतुआ के चार यार / चोखा, चटनी, प्याज, अचार.” एक और कहावत है- “आम के चटनी, प्याज, अचार / सतुआ खाईं पलथी मार.” चटनी अगर मौसम के नए टिकोरे की हो तो सत्तू के स्वाद में चार चांद लग जाते हैं.