– संजय निरुपम
क्या आप जानते हैं कि हर साल दुनिया में 12 लाख लोग जलकर मर जाते हैं? सिर्फ भारत में हर साल 16 लाख अग्निकांड होते हैं, जिनमें 27 हजार लोगों की मौत हो जाती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, मानव शरीर की रचना जिन पंच तत्वों ‘क्षिति जल पावक गगन समीरा’ से हुई है, उनमें पावक यानी अग्नि का व्यापक महत्व है. मगर वही अग्नि कहीं भी रौद्र रूप लेकर हाहाकार मचाती है और उस पर काबू पाने के लिए अग्निशमन यंत्रों और फायर ब्रिगेड सेक्टर का एक बड़ा बाजार तैयार हो गया है. एक मार्केट रिसर्च के अनुसार, इस समय विश्व बाजार में अग्निशमन सेक्टर का टर्नओवर साढ़े चार लाख करोड़ का है.
अग्नि की कृपा: दुनिया की हर सभ्यता में अग्नि पूजा का धार्मिक या आध्यात्मिक महत्व है या रहा है. क्यों? क्योंकि अग्नि मानव जाति की पहली खोज है. अग्नि की मनुष्य पर बहुत भारी कृपा रही है. अगर उसके दुरूह सफर में उसे अग्नि नहीं मिलती तो आदिम मानव कब का नष्ट हो चुका होता और आज हमारा अस्तित्व नहीं होता.
प्राचीन सभ्यताओं में पूजा: सिंधु घाटी सभ्यता ईसा पूर्व चार हजार साल पुरानी है. इस सभ्यता के दो प्रमुख नगरों कालीबंगन और लोथल में अग्नि पूजन के साक्ष्य मिलते हैं. लगभग इतनी ही पुरानी सभ्यता मेसोपोटामिया की है, जहां आज का ईरान, इराक और सीरिया हैं. इस सभ्यता के ईरान क्षेत्र में इस्लाम आने से पहले तक बड़े पैमाने पर अग्नि पूजन के चिन्ह मिलते हैं. इजिप्ट की सभ्यता में अग्नि को सूर्य का प्रतिनिधि मानकर पूजा जाता रहा है.
सनातन में प्रतिष्ठा: अब दुनिया के तमाम धर्मों पर नजर डालते हैं. सनातन धर्म में अग्नि की महिमा सर्वाधिक है. इसका सबसे बड़ा साक्ष्य यह है कि ऋग्वेद की करीब 10 हजार ऋचाओं में भगवान इंद्र के बाद सबसे ज्यादा महिमा गान अग्नि देव का किया गया है. हमारी हर पूजा की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन से होती है. कोई भी यज्ञ तब तक संपन्न नहीं होता जब तक कि अग्नि देवता के आवाह्न के साथ अग्नि कुंड में हवन ना हो जाए. परिणय सूत्र में बंधने की विधि तब पूरी होती है जब वर-वधू अग्नि के समक्ष सात फेरे ले लेते हैं.
अन्य धर्मों में भी महत्व: बाइबल में लिखा है कि जहां आग है, वहां ईश्वर निवास करते हैं. न्यू टेस्टामेंट में कहा गया है कि ईसा मसीह धरती पर अग्नि लेकर आए थे. ग्रीक पुराणों में जोरास्त्रियन धर्मावलंबियों को अग्नि पूजक बताया गया है. आज के ईरान में कभी हजारों फायर टेंपल्स हुआ करते थे. जोरास्त्रियन धर्म के मतावलंबी इन्हीं अग्नि मंदिरों को पूजा स्थल मानते थे. उनका मानना था कि इन मंदिरों में अग्नि स्वरूप में ईश्वर निवास करते हैं.
कुरान में अग्नि: यहूदियों के धर्म ग्रंथ तोराह में कहा गया है कि आग जलती रहनी चाहिए. इसका बुझना विपत्ति का संकेत है. कुरान की कई आयतों में अग्नि का जिक्र सजा देने या पवित्रता के संदर्भ में है. बौद्ध धर्म में भी मोमबत्ती जलाने की परंपरा है. इस धर्म के शास्त्रों में अग्नि को ज्ञान का प्रतिनिधि बताया गया है जो अज्ञानता और भ्रम को जला दे.
अग्नि से पहले की बेचारगी: मनुष्य के विकास की लोकप्रिय कहानी लिखने वाले लेखक Yuval Noah Harari इसका प्रागैतिहासिक परिप्रेक्ष्य बताते हैं. उनका कहना है कि अपनी उत्पत्ति से लेकर करीब तीन लाख साल पहले तक मनुष्य खतरनाक जानवरों से छुपकर जंगलों में रहता था. यह पाषाण युग से बहुत पहले की बात है. तब उसे खेती बाड़ी की भी समझ नहीं थी. उसके पास किसी प्रकार के हथियार नहीं थे. बड़े जानवर जो शिकार करते थे, उनके छोड़े हुए और कई बार सड़े हुए मांस खाकर वह गुजारा करता था. पृथ्वी पर वह सबसे असहाय प्राणी था.
आग पर सवार इंसान: तभी उसे अग्नि मिली. संभवत: दो पत्थर या चट्टान टकराए होंगे और अग्नि प्रज्वलित हुई होगी. उसके लिए यह नई चीज थी. उसे अच्छी अनुभूति हुई. अंधेरे में उजाला मिला और थोड़ी गर्मी भी. यह मनुष्य की पहली खोज थी. जैसे रेलवे, कंप्यूटर इत्यादि की खोज के बाद मनुष्य का सशक्तीकरण हुआ, वैसी ही शक्ति उसे अग्नि से मिली. जानवरों में आग जलाने का शऊर नहीं था. इंसान आग के घोड़े पर सवार होकर जानवर से आगे निकल पड़ा.
बदल गया जीवन: इस खोज से चार फायदे हुए. सबसे पहले, आग के डर से जंगली जानवर भागने लगे. दूसरा, सूरज डूबने के बाद इंसान रात के अंधेरे को पराजित करने लगा. तीसरा, उसने आग के जरिए जंगली पेड़ों और घासों को जलाना शुरू कर दिया. उन्हीं राखों में से सभ्यता की कोंपलें फूटीं. घर बसे, नगर बने. चौथा, अब उसकी कच्चा मांस खाने की मजबूरी नहीं रही. आग पर वह अपना भोजन पकाने लगा. पका हुआ भोजन खाने से आदिम जाति का इंसान आज का इंसान बनने की जैवीय प्रक्रिया में आ गया. पका हुआ भोजन खाने से उसके लीवर, अंतड़ियों और मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ना शुरू हुआ.
पवित्रता के तर्क: अग्नि ने मनुष्य को मनुष्य बनाया. शायद यही कारण है कि संपूर्ण मानव जाति अग्नि के प्रति बेपनाह आदर रखती है. मनुष्य ने अग्नि के पवित्र, दैवीय या नैतिक होने के अपने तर्क गढ़ रखे हैं. सच यह है कि वह अग्नि के अहसान को भूलना नहीं चाहता.
(लेखक कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद हैं)