आज़ादी और नव-चेतना

– आशीष शर्मा (इंडोनेशिया)

आज़ादी तेरी आन का सदक़ा,

मातृभूमि के मान का सदक़ा,

भारत मां की जय का नारा,

शंखनाद से हो जयकारा,

जन-जन जागे,

कण-कण जागे,

रोम-रोम में ज्वाला  जागे,

बच्चा-बच्चा दे हुंकारा,

लाओ कहीं से वो चेतना,

नव-साधना, नव-प्रेरणा.

आज़ादी की राहों में,

कोई आंच न आने देंगे हम,

मर जाएंगे मिट जाऐंगे,

राष्ट्र न मिटने देंगे हम,

आज़ादी की ख़ातिर,

अपने प्राणों की क़ुरबानी दें,

देश की ख़ातिर जन्मे हैं,

और देश पे जान लुटा भी दें,

लाओ कहीं से वो चेतना,

नव-साधना, नव-प्रेरणा.

आज समय है एक हो जाएं,

जात भूल कर, प्रांत भूल कर,

एक भारत का बिगुल बजाएं,

आज समय है कुछ कर जाएं,

वीरों की अमर शहादत का,

अपने लहू से क़र्ज़ चुकाएं,

मिली आज़ादी बलिदानों से,

आओ मिल कर शीष नवाएं,

लाओ कहीं से वो चेतना,

नव-साधना, नव-प्रेरणा.

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