हर साल होता है एक दिन का लॉकडाउन बाली में

– शिरीष शर्मा

दुनिया की कम से कम आधी आबादी ने लॉकडाउन को अनुभव किया, देखा कि जीवन की गति धीमे होने से पर्यावरण को कितना लाभ मिला. हमेशां मटमैला रहने वाला आसमान नीला हो गया, सितारे दिख उठे, पक्षी लौटे, हवा साफ़ हुई, जीव-जंतु बेख़ौफ़ हुए. ये lockdown तो खैर मजबूरी में कोरोना की वजह से हुआ लेकिन दुनिया के नक़्शे पर एक ऐसा भी देश है जिसके एक द्वीप पर हर साल एक दिन पूरी तरह lockdown रहता है. मैं बात कर रहा हूं बाली की.

90 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में बाली एकमात्र द्वीप है जहां हिंदू बहुसंख्यक हैं. बाली का नया साल शक संवत् पंचांग से तय होता है, जो चंद्रमा की गति पर आधारित है. इस नए साल के पहले दिन को कहा जाता है न्येपी. न्येपी का उत्सव तीन दिन चलता है हर साल न्येपी के मौक़े पर यह द्वीप ख़ामोश हो जाता है. किसी को घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं दी जाती. व्यवसायों को बंद करा दिया जाता है. यहां तक कि 24 घंटे के लिए हवाई अड्डे भी बंद रखे जाते हैं. पर्यटन पर टिके द्वीप के लिए यह बड़ा फ़ैसला होता है, लेकिन इसमें परंपराओं के प्रति सम्मान झलकता है.

इस दिन आग नहीं जलाई जाती, बिजली, बत्ती नहीं जलाई जाती. प्रकाश और ध्वनि प्रदूषण के कारण बहुत कुछ खो जाता है. इस दिन फोन बंद, इंटरनेट बंद. मतलब कोई काम नहीं, कोई मनोरंजन नहीं. बाली के कुछ लोग उपवास भी रखते हैं. वे अपने फ़ोन बंद कर देते हैं और बहुत ज़रूरी होने पर फुसफुसाने के अलावा कोई बात नहीं करते.

न्येपी का पर्यावरण पर भी अच्छा असर दिखता है, भले ही यह 24 घंटे के लिए ही क्यों न हो. इंडोनेशिया के मौसम विज्ञान, जलवायु विज्ञान और भू-भौतिकी एजेंसी के 2015 के अध्ययन में पाया गया कि मौन दिवस के दिन बाली के शहरी क्षेत्र में हवा में झूलते धूलकण (TSP) 73 से 78 फीसदी तक कम हो जाते हैं. जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) के विश्लेषण के मुताबिक न्येपी दिवस पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 33 फीसदी कम हो जाता है.

सवाल उठता है कि वे ऐसा करते क्यों हैं ? दरअसल नए साल का उत्सव मनाने से पहले (जिसमें देवताओं की यात्रा, पूजा, बलि भोजन, संगीत आदि सब शामिल होता है), मंदिर में होने वाले हर समारोह से पहले, दानवों को प्रसन्न करने के लिए बलि (कारू) दी जाती है ताकि उनकी इच्छाएं पूरी हो सकें और वे परोपकारी देवता बन जाएं.

दानवों को कच्चा मांस, अंडे और शराब भेंट की जाती है और तेज़ संगीत बजाया जाता है. मान्यता है कि इससे पहले उनका ध्यान खींचा जाता है, फिर उनको ख़ुश करके वापस भेजा जाता है. न्येपी से एक दिन पहले दोपहर में हर गांव, शहर और ज़िले में पूरे साल इकट्ठा होने वाले दानवों को बड़े पैमाने पर खाना-पीना भेंट किया जाता है. उनको वापस भेजे जाने की रस्म अदायगी के बाद शुरू होता है – एक दिन का lockdown और इस दिन सब मौन रहते हैं. बाली के लोगों का विश्वास है कि यदि कोई दानव पलटकर आए तो वह द्वीप को निर्जन समझकर लौट जाए.

दूसरे देश यहां से ज़िंदगी की छोटी-छोटी चीज़ों का सम्मान करना सीख सकते हैं- प्रकृति से जुड़ना, परिवार से जुड़ना, ख़ुद से जुड़ना, ज़िंदगी की रफ़्तार को धीमा करना और सितारों की ओर देखना, आसमान को निहारना. ये सब बहुत मामूली सी बातें मालूम होती हैं लेकिन इनका महत्व कम से कम अब इस कोरोना – प्रसंग के बाद तो लोग समझ सकेंगे.


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