एक मैं अनेक मैं

निधि अग्रवाल

अगर मैं आपसे कहूंगी तो आपको शायद यकीन न हो आप इसे किसी विचलित रात का आतंकित सपना समझें किंतु यह अक्षरश: सच है. एक मैं हूं जो यह आलेख लिख रही हूं. एक मैं, ठीक इसी समय पहाड़ पर गिरती बारिश को देख पाने के लिए बेचैन हो उठी हूं. एक मैं, मां भी हूं जो इस ग्लानि में डूबी हूं कि रविवार की सुबह का यह समय मुझे अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए. एक मैं, उन पुस्तकों को खोल-बंद रही हूं जो मित्रों ने बड़े मान और स्नेह के साथ मेरी प्रतिक्रिया हेतु भेजी हैं. एक मैं, उन किताबों को छूकर अभी-अभी लौटी हूं जिन्हें मैंने बड़े चाव और बेसब्री से मंगाया था. एक मैं, बाहर बोलती चिड़िया को उसकी आवाज से न पहचान पाने के लिए अवसाद में हूं. एक मैं, दौड़कर उस चिड़िया की झलक पा लेने को लालायित हो उठी हूं. एक मैं, इस पूरे दृश्य को कागज पर रंग देना चाहती हूं.

एक मैं, कमरे की सज्जा परिवर्तन का खाका खींच रही हूं. एक मैं, उन फिल्मों के नाम सहेज रही हूं, जो मैं किसी शांत दिन देखना चाहती हूं. एक मैं, किसी की कही कड़वी बात से उबरने के प्रयास में हूं. एक मैं, मैं को बचाए रखने के लिए अपने आप से लड़ रही हूं और इन सबके बीच समय की ठीक इसी तह में स्थिर भाव बैठी दिख रही हूं.  यह सभी मैं मुझे अपनी-अपनी ओर खींच रहे हैं. मैं आंखे बंद कर लेती हूं और एक जगमगाते फोरलेन पर अनियंत्रित दौड़ती अनगिनत गाड़ियों की लाइट की कोंध मेरी आंखे और सिर दुखाने लगती हैं. अतिव्यस्त सड़कों पर ट्रैफिक कंट्रोलर का होना अत्यंत आवश्यक है. ऐसा ही रचनात्मकता का क्षेत्र भी है. अनेक विचारों को दिशा देने के लिए, उचित समय पर गति और विराम देने के लिए एक इंस्पेक्टर नियुक्त करना जरूरी है क्योंकि ऐसे ही अनेक “मैं” के साथ सामंजस्य बिठाना ही मेरा और हम सबका सबसे बड़ा संघर्ष है.

हमारे कई वर्जन है. कई बेहद मुखर, कुछ बिल्कुल शांत. सब की अभिरुचि अलग, सब की अपेक्षाएं अलग. नहीं यह स्पलिट पर्सनैलिटी नहीं है जो एक दूसरे से बेखबर अपना रोल सलीके से निभाते हैं. यह एक तन में अनेक मस्तिष्क के सह अस्तित्व का संकट है. हम सरलता से चिह्नित न किए जाने वाले कॉनजॉइंट ट्विंस हैं. कॉनजॉइंट ट्विंस, जिनकी देह के कुछ भाग परस्पर जुड़े होते है किंतु मस्तिष्क अलग-अलग होते हैं. अपनी परिपक्व और दृढ़ सोच लिए ये दिमाग एक ही तन के लिए एक ही समय में अलग-अलग निर्णय लेते हैं. अगर यह अनेक मस्तिष्क सिंक में काम न करें तो इनका संघर्ष और अवसाद बढ़ जाता है. अधिकतर कॉनजॉइंट ट्विंस लम्बा जीवन नहीं जी पाते या जितना भी जीते हैं वह सार्थक न होकर तन-मन से जूझते बीत जाता है लेकिन जब-जब दो मस्तिष्क एक दूसरे की सत्ता स्वीकार लेते हैं, अंतर्विरोध समाप्ति हेतु नियम निर्धारित कर लेते हैं तब इस उलझे जीवन की कई ग्रंथियां सुलझ जाती हैं.

चांग और एंग बंकर (1811-1874) सियाम (अब थाईलैंड) में पैदा हुए हुए ऐसे ही जुड़वा भाई थे, जिन्होंने परस्पर सामंजस्य से नियति की इस चुनौती को ध्वस्त करते हुए सुंदर जीवन जिया. उन्होंने लंबी यात्राएं की और सड़क किनारे लोगों का मनोरंजन करती किसी अजूबा जोड़ी से उठाकर,अपनी छवि को, संघर्षों को साझा करते मोटिवेशनल स्पीकर के गरिमामयी पायदान पर पहुंचा दिया. चांग और एंग के जिगर आपस में एक मासंल बैंड से जुड़े हुए थे जिन्हें उस समय अलग करना संभव नहीं था.

उन्होंने कुशलता से व्यापार किया, संपति अर्जित की और विवाह भी किया. 13 अप्रैल, 1843 को, इंग ने सारा येट्स और चांग ने एडिलेड येट्स से विवाह किया. दोनों के पृथक घर थे जिनमें वह निर्धारित दिनों पर रहते थे. जिसका घर होता था वह भाई ‘एक्टिव’ और दूसरा ‘पैसिव’ अस्तित्व का निर्वहन करता था. समय के साथ सारा ने तीन और एडिलेट ने चार बच्चों को जन्म दिया. 1870 में, चांग का दाहिना हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया, इंग ने निरंतर चांग की देखभाल की. इसके बावजूद वह अस्वस्थ बना रहा और 1874 तक ब्रोंकाइटिस के कारण सांस लेने में तकलीफ महसूस करने लगा.

17 जनवरी की सुबह, इंग के बेटे ने सोते हुए इंग को जगाकर बताया कि “अंकल चांग मर चुके हैं.” इंग ने जवाब दिया “तो फिर मैं जा रहा हूं.” पारिवारिक डॉक्टर को तुरंत बुलाया गया लेकिन चांग की मृत्यु के दो घंटे बाद ही इंग की मृत्यु हो गई. उन दोनों ने 62 वर्षों का जीवन जिया जो उस समय किसी भी संयुक्त जुड़वा के लिए अकल्पनीय था. इसी कारण सियामी जुड़वां शब्द को संयुक्त जुड़वां के पर्याय के रूप में उपयोग किया जाने लगा.

ऐसा ही उदाहरण 28 अक्टूबर, 1951 में जन्में रोनाल्ड ली गैलियन और डोनाल्ड ली गैलियन का भी है जिन्होंने 68 वर्ष का सामंजस्य भरा जीवन जीकर विश्व रिकॉर्ड बनाया और फुटबाल के प्रेमी इन भाइयों ने 4 जुलाई 2020 को इस दुनिया को अलविदा कहकर बताया कि अराजकता पर विजय पा, कैसे नियति को बदला जा सकता है.

 ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां यह समझा गया कि अलग-अलग दिशा में भागने या अलग होने के प्रयास में कुछ न कुछ क्षति तो अवश्य होगी तब वे परस्पर समन्वय स्थापित कर निर्णय लेते हैं और अपेक्षाकृत कम संघर्ष का जीवन जीते हैं.

 इनसे गुजरते हुए मैं सोचती हूं कि बाहरी दुनिया को समझने से पहले मुझे भी अपने भीतर के अनेक मैं को समझना होगा. यह ऐसा कठिन भी नहीं बस स्वीकार्यता और जागरूकता का खेल है. अमेरिकी गणितज्ञ जॉन नैश की तरह यथार्थ और भ्रम को चिह्नित कर लेने का खेल.

इनके कनेक्शन को समझते हुए निर्णय लेने होंगे. जो मैं मात्र भ्रम है उन्हें पूर्णतः ख़ारिज कर देना है. इनमें से कुछ बेहद कमजोर तंतुओं से मुझसे जुड़े हैं उन्हें विलगाते हुए मुझे कोई दर्द, कोई हानि नहीं होगी, बस मेरा भार कम हो जाएगा. लेकिन कुछ तंतु आपस में इस कदर उलझे हैं या एक दूसरे पर आश्रित हैं कि उनको पृथक करने के प्रयास में उनका अस्तित्व खतरे में आ सकता है. मुझे उचित समय पर उनकी प्राथमिकताओं को बदलते रहना होगा. एक को फोकस में ले अन्यों को कुछ समय के लिए अदृश्य मान लेना होगा.

हमारे भीतर बैठे इन विभिन्न ‘demons’ के बीच मैत्री कराने के बाद, इनके स्वामित्व का समय निर्धारित करने के बाद ही हम अपने जीवन में कुछ सफलता और शांति पा सकते हैं.  अपने परिवार, दोस्तों, सहकर्मियों और पड़ोसियों के साथ मानसिक शांति और सौहार्द बना सकते हैं और जब यह अनेक मस्तिष्क राष्ट्र और विश्व के संदर्भ में एक साथ आते हैं तब भी कुछ बड़ा और सुंदर करने के लिए क्या यही कुशल संयोजन नहीं मांगते जिसकी मिसाल बरसों पहले मछुआरों के गांव में जन्में दो अनपढ़ भाई चांग और एंग बंकर ने कायम की थी. आखिर हम सब विभिन्न नागरिकता वाले कॉनजॉइंट ट्विंस ही तो हैं जिनका संरक्षण कई अदृश्य मांसल बैंड्स से परस्पर जुड़ा हुआ है.

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