कुमार रूपेश
गढ़ कुंडार देश के दुर्गम दुर्गों की श्रेणी में आता है. यह मऊ रानीपुर से 50 किमी दूर म.प्र. के निवाड़ी जिले में स्थित है. यह किला बेजोड़ कारीगरी के साथ- साथ सामरिक दृष्टि से जंगल- पहाड़ो के बीच होने से अजेय दुर्ग की श्रेणी में आता है.
इस किले का निर्माण खेतसिंग खंगार द्वारा कराया गया. पृथ्वीराज और खेतसिंह के पिता मित्रता के चलते खेत सिंह के संबंध भी पृथ्वीराज से प्रगाढ़ थे.
जब पृथ्वीराज ने महोबा के चंदेलों पर आक्रमण किया तब खेतसिंग उसके सैन्य प्रमुख थे. चंदेल, खेत सिंह के शौर्य के सामने टिक न सके.
बैरागढ़ के युद्ध मे ऊदल ने वीरगति पाई. पृथ्वीराज की विजय होने पर आल्हा , परमाल सहित कालिंजर चले गये. कहा जाता है कि आल्हा ने इसके बाद संन्यास ले लिया.
महोबा चंदेलों से जीत लिया गया. पृथ्वी राज ने विजय का श्रेय खेत सिंह खंगार को दिया तथा उनकी मातहती में विजित क्षेत्र छोड़कर दिल्ली चला गया. खेतसिंह खंगार पराक्रमी योद्धा के साथ साथ कुशल प्रशासक भी था.
खेतसिंग ने महोबा के बजाय गढ़ कुंडार को राजधानी बनाया, इस खंगार वंशीय राज्य की नींव रखी. उसी के पौते ने चंदेलों की सैन्य चौकी ज़िनागढ़ के स्थान पर दुर्ग का निर्माण सन 1180 में कराया.
खंगार वंश का अंतिम शासक मानसिंह की एक सुंदर राजकुमारी थी जिसका नाम केशर दे था. उसके रूप सौंदर्य की चर्चा दिल्ली तक थी.
मोहम्मद तुगलक ने राजकुमारी से शादी का प्रस्ताव भेजा जो मान्य नही हुआ. उसने सन 1343 ई. में गढ़कुंडार पर आक्रमण कर दिया. खंगारों की पराजय हुई.
राजकुमारी कैसर दे ने अन्य महिलाओं के साथ कुंए में कूद कर प्राण त्याग कर अपनी अस्मिता की रक्षा की. केसर दे की गाथा आज भी यहां के लोक गीतों में सहेज कर रखी गई है.
इस प्रकार मोहम्मद तुगलक ने विजित भू- भाग सोहनपाल बुंदेला को सौंप दिया.
गढ़कुंडार से खंगार राज्य समाप्त होने के संबंध में यह भी कहा जाता है कि तत्कालीन खंगार राजा हुरमत सिंह के पुत्र नागदेव सोहनपाल बुन्देला की रूपवती कन्या से विवाह करना चाहता था.
सोहनपाल के राज़ी न होने पर हुरमत सिंह ने सोहनपाल को घेर लिया और विवाह के लिए भारी दबाव डाला जाने लगा. इस परिस्थिति से मुक्ति के लिए सोहनपाल ने युक्ति से काम लिया.
उसने विवाह का प्रस्ताव इस शर्त पर स्वीकार किया कि नागदेव संपूर्ण परिवार को बारात में लाएगा. इस बारात के स्वागत सत्कार में शराब में जहर मिला दिया गया.
तमाम वीर खंगार मरने लगे. हुरमत सिंह एवं नागदेव सहित सभी खंगार योद्धा मारे गए. तभी बुंदेलो ने परमारों से मिलकर हमला कर दिया जो भी शेष खंगार बचे तलवार के घाट उतार दिए गए.
गढ़ कुंडार से खंगार सत्ता का अंत हो गया. इस प्रकार बुंदेलों ने युक्ति पूर्वक गढ़कुंडार पर आधिपत्य कर लिया. इस तरह गढ़ कुंडार बुंदेलों के अधीन आया. बुंदेलों की राजधानी ओरछा स्थानांतरित होने तक गढ़ कुंडार बुंदेलखंड की राजधानी रहा.