– तूलिका गणपति मिश्रा
हे गणपति,
देती आमंत्रण झुकाकर शीश,
पधारो घर देने आशीष,
विद्या, बुद्धि,सिद्धि,संतुष्टि,
करदो हमपर कृपा की वृष्टि.
पुरे दृश्य में दृष्टि तुम्हारीं,
मैं तो बस भूमिका मात्र हूं,
सारी सृष्टी में सृजन तुम्हारा,
मैं तो बस तूलिका मात्र हूं.
असीमित ज्ञान से भर दो मुझको,
चंचलता हर लो हे गंभीर,
संघर्षों में स्थिरता देकर,
चित्त ना होने दो अधीर.
ऐसा स्वच्छ जीवन दे दो कि,
ना पीड दूं ना पीड सहूं,
अंधकार में तेरे प्रकाश से,
दुर्बल के लिए भी स्वप्न बुनूं .
अंतरात्मा में पाऊं तुझको,
हर प्राप्ति तुम्हें अर्पित करूं,
अपनी सांसों के कीर्तनों से,
हर क्षण तुम्हें जागृत रखूं.
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