”जीवन”

– तूलिका गणपति मिश्रा

तरसें उससे पहले जी लें,

ज़िन्दगी को अर्थ एक दे दें

पल –पल घटते इस जीवन को

हम तुम-मिल अनंत अब कर लें.

आयु का कब क्या ठिकाना

कब होना पड़ जाये रवाना

प्रयास करें बनायें एक हस्ती

एक बार मिलीं सांसें ना सस्ती.

संवेदना आने दे बाहर,

अच्छा नहीं जीना घुटघुटकर

मैं से तुम और तुम से हम

मिल जाएं जीवन हो सुखकर.

जीवन को दें नया आयाम

सार्थक हो सुबह और शाम

रहें निरर्थक बातों से दूर

करने हैं बहुतेरे काम.

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