– ध्रुव गुप्त
सावन के महीने का आरंभ हो गया है. सावन बारिशों का महीना है जब महीनों की झुलसाती धूप और ताप से बेचैन धरती की प्यास बुझती है. सावन जहां पृथ्वी और बादल मिल कर सृष्टि और हरियाली के नए-नए तिलिस्म रचते हैं. सावन की झोली में सबके लिए कुछ न कुछ है. कृषकों के लिए यह धरती की गोद में फसल के साथ सपने बोने का महीना है. प्रेमियों के लिए यह बसंत के बाद प्रेम के लिए दूसरा सबसे अनुकूल मौसम है. बच्चों के लिए यह उमंग, उल्लास और कागज की नाव चलाने के दिन हैं. लड़कियों के लिए यह झूले में बैठ कर आकाश नापने का मौका है. विवाहित स्त्रियों के लिए यह कजरी गीतों के बहाने मायके में छूट गए रिश्तों को याद करने का मौसम है. जीवन से उदासीन जिन थके- हारे लोगों के लिए जीवन में कुछ नहीं बचा, उनके लिए भी जीवन को कई-कई रूपों में अंकुरित होते देखने का अवसर तो है ही.
धर्म की दृष्टि से सावन को भगवान शिव का महीना कहा जाता है. प्राचीन काल में देवताओं और असुरों के समुद्र-मंथन का संयुक्त अभियान सावन के महीने में ही समाप्त हुआ था. मंथन से जो चौदह रत्न मिले थे उनमें से बारह देवताओं के हिस्से में आए और मात्र एक वारुणी असुरों के हिस्से में. चौदहवें रत्न, विनाशकारी हलाहल विष का कोई दावेदार नहीं था. सृष्टि को इस घातक विष के प्रभाव से बचाने के लिए शिव ने यह जहर पीना स्वीकार किया और नीलकंठ बने. उनके शरीर में विष का ताप कम करने के लिए देवताओं ने गंगाजल लाकर उनका अभिषेक किया. तब से सावन में शिव भक्तों द्वारा पवित्र नदियों से जल लेकर भारत के ज्योतिर्लिंगों और शिव के दूसरे मंदिरों में चढाने की परंपरा रही है.
वैसे भी सावन प्रकृति के संवरने का मौसम है और शिव प्रकृति के देवता. पर्वत शिव का आवास है. वन उनकी क्रीड़ाभूमि. नदी उनकी जटाओं से निकलती है. योग से वे वायु को नियंत्रित करते हैं. उनकी तीसरी आंख में अग्नि का तेज और माथे पर चंद्रमा की शीतलता है. सांप, बैल, मोर, चूहे उनके परिवार के सदस्य हैं. उनके पुत्र गणेश का सर हाथी का है. उनकी पत्नी पार्वती के एक रूप दुर्गा का वाहन सिंह है. उनका त्रिशूल प्रकृति के तीन गुणों – रज, तम और सत का प्रतीक है. उनके डमरू के स्वर में प्रकृति का संगीत है. उनकी पूजा महंगी पूजन सामग्रियों से नहीं, प्रकृति में बहुतायत से उपलब्ध बेलपत्र, भांग की पत्तियों, धतूरे और कनैल के फूलों से की जाती है. शिव निश्छल, भोले और कल्याणकारी हैं. एकदम प्रकृति की तरह.
महादेव शिव का जीवन यह संदेश है कि प्रकृति से तादात्म्य स्थापित कर जीवन में सुख-शांति, सरलता, शौर्य, अध्यात्म, योग सहित कोई भी उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है. शिव का सावन प्रकृति के साथ साहचर्य का संदेश है. यह चेतावनी भी कि प्रकृति के साथ अनाचार का हासिल अंततः प्रलयंकारी तांडव के सिवा कुछ नहीं होने वाला है.