राजेंद्र परदेसी
कल तक बेटे को, मां को घर का काम करते देख पीड़ा होती थी. सलाह भी देता कि तुम अधिक काम न किया करो, पर अब उसके विचारो में परिवर्तन आ गया था, क्योंकि कल तक वह मां का बेटा ही था, अब पत्नी वाला भी हो गया है इसीलिए पत्नी की पक्षधरता करते हुए बोला- “मां, तुम आजकल लेटी क्यों रहती हो? तबियत तो ठीक है न?”
“बेटा, उम्र अधिक हो गयी है, काम करने से थक जाती हूं, बहू आ गयी है तो थोड़ा आराम भी कर लेती हूं.
मां, अपनी बात को पूरा कर भी नहीं पायी थी कि बेटा बीच में ही बोल पड़ा- “लेकिन मां, सुकन्या से काम न कराया करो. अपने पिता के घर में उसने कभी कोई काम नहीं किया. यहां करेगी तो उसकी तबियत ख़राब हो सकती है.
“बहू ने तो कभी ऐसा कहा नहीं बल्कि वह स्वयं ही मुझे आराम करने की सलाह देती है.”
“उसके कहने से क्या होता है तुम्हें खुद सोचना चाहिए.”
बेटे की बातो को सुनकर मां को विश्वास नहीं हो रहा था कि उसका अपना बेटा यह बात बोल रहा है, पर सामने तो बेटा ही खड़ा था.