बिल्ली को मिला ज्ञान

आशा पाण्डेय ओझा

बिल्ली बैठी कार में,

घूम रही बाजार में.

पीली उसकी ड्रेस थी,

जिसपर बढ़िया प्रेस थी.

घुंघराले से बाल थे,

और होंठ भी लाल थे.

चश्मा काला गोल था,

ज्यादा जिसका मोल था.

मोबाइल था हाथ में,

लगी किसी से बात में.

बातों में मशगूल वो,

भूली ट्रेफिक रूल वो.

आड़े फिरकर रस्ते में,

रोका ट्रेफिक दस्ते ने,

हवलदार से लड़ गई,

जिद्द पर अपनी अड़ गई.

हुई क्रोध से लाल वो,

फुला रही है गाल वो.

काट दिया चालान जब,

आया उसको ज्ञान तब.


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