– वंदना अवस्थी दुबे

हिंदुस्तान विभिन्न संस्कृतियों को समेटने वाला एक अद्भुत देश है. ज़रा-ज़रा सी दूरी पर यहां लोकाचार में भिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है. त्यौहार मनाने के तरीक़े भी अलग-अलग हैं. विवाह की रीतियां भी भिन्न हैं. लेकिन आज मैं बात करूंगी, अपने बुंदेलखंड के विवाह की रीतियों और उनसे जुड़े मधुर लोकगीतों की.
बुंदेलखंड में विवाह की अलग ही रौनक होती है. वैवाहिक रीतियों का आरंभ होता है ’लगुन’ लिखे जाने से. लगुन वो पत्र होता है, जिसमें विवाह की तमाम विधियां, तिथि सहित लिखी होती हैं. लगुन को बुंदेली में ’सुतकरा’ भी कहते हैं. लगुन लिखने के बाद घर की महिलायें अनाज का आदान-प्रदान करती हैं सूप के माध्यम से और गाती हैं-

कोरे से कगदा, मंगाये राजा बाबुल,
बेटी की लगुन लिखाई मोरे लाल….
पांच सुपारी मंगाई बाबुल जू,
बेटी की लगुन लिखाई मोरे लाल….
पांच हरद की गंठिया मंगाई बाबुल जू,
बेटी की लगुन लिखाई मोरे लाल….
तिलक – लगुन के बाद बारी आती है ’तिलक’ की. इस रस्म के लिये बेटी के पिता, चाचा, भाई और अन्य परिजन वर के घर जाते हैं विभिन्न वस्तुएं ले के जिसमें चांदी से मढ़े नारियल, सुपारी, हल्दी मिठाई, फल, और वस्त्र इत्यादि होते हैं. वधु का पिता अपनी सामर्थ्य के अनुसार नकद राशि भी भेंट में देता है. इस अवसर पर वर के परिवार की महिलाएं गाती हैं-
सो इन नाऊ बमनन ने
हीरा मोरो ठग लओ
हीरा मोरो ठग लओ
नगीना मोरो ठग लओ
सो इन नाऊ बमनन ने..
पहले कहत हम हंतिया जो दैबि
सो अंकुश दै कें बिलमा लय राजा बनरे
सो इन नाऊ….
छेई माटी- विवाह की एक प्रमुख रस्म होती है ’छेई माटी’ की. इस रस्म में घर की महिलाएं सात छोटी-छोटी टोकरियां ले के घर के पास स्थित किसी भी मंदिर या खेत में जाती हैं और वहां धरती का पूजन कर के मिट्टी खोदती हैं. ये मिट्टी इन टोकरियों में भर के घर लाई जाती है. इसी मिट्टी से पांच चूल्हे और हवन कुंडी बनाई जाती है. मंडप के दिन इन्हीं चूल्हों पर ’मायें’ बनती है और हवन कुण्डी फेरों के समय इस्तेमाल की जाती है. छेई माटी के लिये जाते समय महिलाएं गाती हैं-

निहारो न मोहन मोरी ओर
नज़र लग जैहै…
एक तो चंद बदन उजियारी
दूजे अपने पति खां प्यारी….
तनक नज़र के लगतन
सुध बुध हिये न रैहै…..
लगुन, छेई माटी के बाद, बारी आती है मंडप की. आंगन के बीचों बीच चार हरे बांस गाड़ के उसके ऊपर भी बांस बिछाए जाते हैं जिन पर पलाश के पत्तों की छाया की जाती है. आगे के सभी वैवाहिक कार्य इसी मंडप में किये जाते हैं. मंडप के बीच में लकड़ी का ’खम्भ’ गाड़ा जाता है.
हरे बांस मंडप छाये
सिया जू खां ब्याहन राम आये
जब सिया जू की लिखत लगुनियां
रकम रकम कागज आये,
सिया जू खां राम…….
तेल चढ़ना– मंडप के नीचे वर/कन्या को तेल चढ़ाने की रस्म होती है. इसे घर की महिलायें और पांच कन्याएं पूरा करती हैं.
चढ़ गओ तेल फुलेल, छिटक रहीं पांखुरियां
को लाओ तेल फुलेल, को लाओ पांखुरियां,
तेलन ल्याई तेल-फुलेल, मालिन ल्याई पांखुरियां….
भाभी ने तेल चढ़ाओ, वीरन राये बैहदुलिया….
चीकट– बुंदेलखंड के विवाह में भात और चीकट का विशेष महत्व है. विवाह के पहले वधु की मां अपने भाई के पास भात ले के जाती है और बेटी के लिये चीकट लाने का न्यौता देती है. मंडप के दिन मामा चीकट ले के आता है, जिसमें कपड़े, गहना, फल, मिठाई और अन्य खाद्यान्न होते हैं.
हरदौल लला मोरी कही मान लियो
हो हरदौल लला….
कहूं भूला परै कहूं चूका परै
तौ संभाल लियो हो हरदौल लला….
द्वाराचार– विवाह के दिन जब बारात दरवाज़े पर आ जाती है तो सबसे पहले द्वाराचार की विधि होती है जिसमें कन्या का पिता दरवाज़े पर ही वर का तिलक, पूजन आदि करता है.
बने दूल्हा छवि देखो भगवान की,
दुल्हन बनी सिया जानकी…..
समवेत स्वरों में गाया जाने वाला ये गीत बहुत मधुर लगता है.
चढ़ाव– मंडप में कन्या को बिठाने के बाद वर पक्ष अपने साथ लाया विभिन्न सौगातें वधु को चढ़ाता है जिसमें वस्त्र, गहने, प्रसाधन, चप्पल आदि सभी सामग्री होती है.
तुम आईं चढ़ाये के चौक
बेटी राजन की…..
समार-समार पग धरियो
बेटी राजन की…
पाणिग्रहण एवं भांवर– विवाह की सबसे महत्वपूर्ण यही विधि होती है जिसमें अग्नि के सात फेरे लिये जाते हैं. इसी विधि में बेटी के माता-पिता बेटी के हाथ हल्दी से पीले करके, उसके हाथ को वर के हाथ में सौंपते हैं. पाणि यानी हाथ और ग्रहण यानी स्वीकार करना. इसी हाथ सौंपने की विधि से इस संस्कार का नाम पाणिग्रहण पड़ा.
राम लखन ब्याहन खों आये,
सीता जनक दुलारी वे, हां हां वे हूं हूं वे….
फर्श गलीचा बिछे अनेकन,
धूम मचीऐ भारी वे हां हां वे हूं हूं वे…..
विदाई- रात्रि में पाणिग्रहण के बाद सुबह कुंवर कलेवा, बाती मिलाई के बाद विदाई की घड़ी आती है. बेटी की विदाई अपने आप में बेहद करुण दृश्य उपस्थित करती है. ऐसा कोई नहीं होता जिसकी आंखें विदा के समय नम न हो जाती हों.
राजा ससुर घर जाती हैं बेटी
करके सोलह सिंगार मोरे लाल….
दम दम दमके माथे की बिंदिया,
ऊसई गरे कौ हार मोरे लाल…..
एक और गीत है जिसे सुनते ही आंखें स्वत: ही छलकने लगती हैं-
कच्ची ईंट बाबुल देहरी न धरियो,
बेटी ने दियो परदेस मोरे लाल…..
इस प्रकार तमाम छोटे-बड़े रस्मोरिवाज़ पूरे करते हुए वैवाहिक अनुष्ठान सम्पन्न होता है.