– अरुण उपाध्याय
पुराणों में विश्व के 2 प्रकार के विभाजन हैं. 7 लोक और तल-उत्तर गोल का 4 खंड में समतल नक्शा बनता था जो विषुव रेखा को घेरने वाले वर्ग पर पृथ्वी व्यास के 100 गुणे ऊंचे पिरामिड सतह पर प्रक्षेप था. इसे मेरु के 4 रंग के 4 पार्श्व कहा गया है. प्राचीन काल में उज्जैन की देशान्तर रेखा को शून्य मानते थे. उसके पूर्व और पश्चिम 45-45 अंश दूरी तक विषुव से उत्तर ध्रुव तक भाग को भारत पाद या भूमि रूप कमल का दल कहते थे.
अन्य 3 पाद थे – पूर्व में भद्राश्व वर्ष, पश्चिम में केतुमाल वर्ष, विपरीत दिशा में कुरु वर्ष (विष्णु पुराण, 2/2/24, 40). इसी प्रकार दक्षिण गोल में भी 4 पाद थे. भारत भाग में विषुव से उत्तर ध्रुव तक आकाश के 7 लोकों की तरह 7 लोक थे. विंध्य के दक्षिण भू लोक, हिमालय तक भुवः, हिमालय या त्रिविष्टप (तिब्बत) स्वः, चीन महः, मंगोलिया जनः, साइबेरिया तपस (स्टेपीज), ध्रुव वृत्त सत्य लोक. अन्य 7 पाद 7 तल थे – भारत के दक्षिण तल या महातल, केतुमाल या अतल, उसके दक्षिण तलातल, कुरु वर्ष पाताल, उसके दक्षिण रसातल, भद्राश्व को सुतल, उसके दक्षिण वितल.
अन्य वर्णन वास्तविक महाद्वीपों का था. जम्बू द्वीप एशिया, प्लक्ष द्वीप-यूरोप, कुश द्वीप-विषुव के उत्तर अफ्रीका, शाल्मलि द्वीप-विषुव के दक्षिण अफ्रीका, कुश या अग्नि द्वीप (भारत से अग्नि कोण में)-आस्ट्रेलिया, उत्तर अमेरिका (क्रौञ्च द्वीप), दक्षिण अमेरिका-पुष्कर द्वीप. इसके अतिरिक्त दक्षिणी ध्रुव का अलग से नक्शा बनता था क्योंकि मेरु प्रक्षेप में यह अनंत आकार का हो जायेगा. अतः इसे अनंत द्वीप कहते थे. उत्तर ध्रुव जल भाग में है (आर्यभटीय, 4/12), अतः वहां कोई समस्या नहीं होती. द्वीपों के घेरने वाले 7 समुद्र हैं.
२. भारत के अन्य दो अर्थ-
(क) हिमालय को पूर्व समुद्र से पश्चिम समुद्र तक फैलाने पर वह ९ खण्ड का भारत-वर्ष है, जिस पर पिछले ३१,००० वषों से स्वायम्भुव मनु, राजर्षि ध्रुव, पृथु, १४ इन्द्र, वैवस्वत मनु, पुरु, ययाति, इक्ष्वाकु, ऋषभ, उशीनर, मान्धाता, दिलीप, गाधि तथा अन्य कई प्रतापी राजाओं ने शासन किया है (महाभारत, भीष्म पर्व, ९/५-९)।
भारत वर्ष के ९ खण्डों के नाम अधिकांश पुराणों में हैं-विष्णु पुराण (२/१/२७-३२), स्कन्द पुराण प्रभास खण्ड (१७२/१-५) मत्स्य पुराण (११४/६-१५)।
(१) इन्द्रद्वीप = दक्षिण पूर्व एशिया, इन्द्र पूर्व के लोकपाल थे। यहां आज भी इन्द्र से सम्बन्धित ५० वैदिक शब्द प्रचलित हैं। गरुड़ के नाम पर कम्बोडिया का केंद्रीय जिला वैनतेय है।
(२) कशेरु – बोर्नियो, सेलेबीज, फिलीपीन।
(३) ताम्रपर्ण – तमिलनाडु के निकटवर्त्ती सिंहल (श्रीलंका)।
(४) गभस्तिमान – पूर्वी इंडोनेसिआ ।। पपुआ न्यूगिनी आस्ट्रेलिया का भी भाग था, जहां की गभस्ति नदी को शक द्वीप में कहा गया है।
(५) नाग द्वीप – अण्डमान निकोबार से पश्चिमी इण्डोनेसिया तक। नाग का अर्थ हाथी भी है। हाथी की सूंड जैसा नक्शॆ में आकार होने के कारण इंडोनेसिया को शुण्डा द्वीप भी कहते थे।
(६) सौम्य – उत्तर में तिब्बत।
(७) गंधर्व – अफगानिस्तान, ईरान।
(८) वरुण – अरब, ईराक (वरुण पश्चिम के लोकपाल)।
(९) भारत या कुमारिका खण्ड-वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश।
३. भारत के नाम-
(१) भारत नाम के ३ कारण कहे जाते हैं-(क) वेद के अनुसार भारत का अग्नि (अग्रणी, लौकिक नाम अग्रसेन) विश्व का भरण पोषण करता था। अतः उसे भरत कहते थे।
विश्व भरण पोषण कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई॥
(रामचरितमानस, बालकाण्ड)
वेद-पुराण में २० से अधिक उदाहरण हैं-यजुर्वेद (११/१६), ऋक् (१/१६१/१४, ४/२५/४, १०/२/१/५, ६/१५/८,४९, १३, ६/१६/१, ४, १९, ४५, ८/३९/८ (कौषीतकि ब्राह्मण (३/२), शतपथ ब्राह्मण (१/४/२/२, १/५/१९/८), मत्स्य पुराण (११४/५, ६, १५), वायु पुराण (४५/७६, ८६)
(ख) ऋषभ देव के पुत्र भरत के नाम पर (प्रायः ९,५०० ईपू)-विष्णु पुराण (१/२/३२), मार्कण्डेय पुराण (५०/४१-४२) आदि।
(ग) दिलीप-शकुन्तला पुत्र भरत के नाम पर-महाभारत, आदि पर्व (७८/१२७-१३१), अग्नि पुराण (२७८/५-६), स्कन्द पुराण (७/१/१७२/१-१२), शतपथ ब्राह्मण (१३/५/४/११-१३) ऐतरेय ब्राह्मण (८/२३)।
(२) अजनाभ वर्ष-विश्व सभ्यता के केंद्र रूप में यह अजनाभ वर्ष था। अज = अजन्मा भगवान्, उनकी नाभि मणिपुर चक्र, उससे ब्रह्मा आ ब्रह्म देश। इसकॆ शासक जम्बूद्वीप के राजा अग्नीध्र के पुत्र नाभि थे (विष्णु पुराण, २/१/१५१५-१८)।
(३) हिमाह्वय या हिमवत वर्ष-इसका वर्ष पर्वत हिमालय होने से यह नाम है। वर्ष पर्वत का अर्थ वर्षा का प्राकृतिक क्षेत्र जो देश या वर्ष कहलाता है। (विष्णु पुराण (२/१/२७) आदि।
(४) इन्दु-मण्डल या विन्दु-विन्दु सरोवर (मानसरोवर) से समुद्र तक का क्षेत्र होने से विंदु देश है (स्कंद पुराण, ७/१/१७२/१०, कूर्म पुराण, ४६/२८)। आकाश में भी विंदु से सृष्टि हुई। भारत के विंदु क्षेत्र (तिब्बत) से २ दिशाओं में नदियों का विसर्ग हुआ-पश्चिम में सिन्ध नद सिन्ध सागर (अरब सागर) तथा पूर्व में गंगा ब्रह्मपुत्र गंगासागर या ब्रह्मा का क-मण्डल (क = जल) में लीन होती हैं। इन समुद्रों तथा भारत समुद्र तक विंदु देश हुआ। हुएनसांघ के अनुसार (भारत यात्रा, अध्याय २) भारत को ३ कारणों से इन्दु (चन्द्र) कहते थे-(क) भारत की उत्तर सीमा अर्ध चन्द्र की तरह है, (ख) हिमालय चन्द्र की तरह ठण्ढा है, (ग) चन्द्र की तरह भारत विश्व को ज्ञान का प्रकाश देता है (भारत = भा या प्रकाश में रत)।इंदु का उच्चारण ग्रीक लोग ठीक से नहीं कर पाते तथा इंडे कहते हैं। इससे इंडिया हुआ है।
(५) कुमारिका खंड – मुख्य भारत खंड अधोमुख त्रिकोण है जो हर पुराण में लिखा है। पर १७५० तक यूरोपीय यात्री इसे चौकोर कहते थे। अधोमुख त्रिकोण शक्ति का प्रतीक है, उस पर अर्ध चंद्राकार हिमालय मिलाने से वह प्रचलित प्रेम चिह्न होता है। शक्ति का मूल रूप कुमारी होने से भारत को दक्षिण की तरफ से देखने पर कुमारिका खंड कहते हैं। इसके दक्षिण का ध्रुव तक समुद्र भी कुमारिका खंड (समुद्र) है-तमिल काव्य शिलप्पाधिकारम्।
(६) हिन्दुस्थान-विंदु से इंदु , उससे हिंदू हुआ यह एक मत है। एक अन्य परिभाषा है-हीनं दूषयति इति हिंदू।। जो नीच कर्म की निंदा करता है, वह हिंदू है। भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व (३/२/९-२१) के अनुसार १९ ई. में विक्रमादित्य के निधन के बाद भारत पर चीन, तातार, शक, बाह्लीक, खुरज (कुर्द), रोम, कामरूप (स्मरखण्ड) ने आक्रमण किया था। उनको पराजित कर विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने सिंधु नदी को भारत की मर्यादा घोषित की और इसे सिंधुस्थान कहा। इससे हिंदुस्थान हुआ। अन्य वैदिक मत है कि पृथ्वी गो रूप है (ग्रीक में भी गैया), इस गो का पालन तथा भक्ति करने वाले हिंदू हैं। यह दो शब्दों-हिंकृण्वती (हिंकार करने वाली) तथा दुहाम (दुहा)-के प्रथम अक्षरों से बना है। (ऋक् मन्त्र, १/१६४/२७, अथर्व, ७/७३/८ की पारस्कर गृह्य सूत्र १/१८/३-४ में व्याख्या)। गो-रूपी यज्ञ से पालन यजुर्वेद के प्रथम मंत्र में विस्तार से है।
४. सनातन भारत-(१) स्वायम्भुव मनु के समय से प्रसिद्ध। मेगास्थनीज आदि ने भी लिखा है कि भारत एकमात्र देश है, जहां कोई बाहर से नहीं आया (इंडिका, पारा ३८)।
(२) हिमालय से रक्षा-हिमालय के कारण भारत हिम-युग तथा जल प्रलय के चक्रों से अप्रभावित रहा और यहां कृषि आदि उत्पादन होता रहा।
(३) विविधता-भारत में विश्व के सभी प्रकार के वन क्षेत्र और वनस्पति हैं। अतः यहां समन्वय का अभ्यास है।
(४) सनातन धर्म-सनातन पुरुष या ब्रह्म की भक्ति। यहां सनातन सत्य का पालन होता है, पैगम्बरों की इच्छा अनुसार नियम नहीं बदलते।
(५) यज्ञ संस्था-यज्ञ द्वारा उत्पादन होता है। एक यज्ञ द्वारा अन्य यज्ञों का समन्वय कर भारत की उन्नति हुई है (पुरुष सूक्त, १६)। इसके विपरीत असुर बल (असु) द्वारा धन लूटते थे। ईसाई तथा इस्लाम मतों में नियम था कि लूट का १/५ भाग पोप या खलीफा को दें-इसे माल-ए-गनीमत कहते थे।
५. देव संस्था-(१) देवी रूप-देवी अथर्व शीर्ष में देवी ने अपने को राष्ट्री संगमनी कहा है। इसके आधार पर बंकिम चंद्र ने वंदे-मातरम् गीत लिखा था। त्रिकोण के रूप में इसके ३ कोने हैं-काली, सरस्वती, लक्ष्मी। ९ दुर्गा की तरह भारत वर्ष के ९ खण्ड हैं। अन्य प्रकार से इसमें ५२ या १०८ शक्ति पीठ हैं।
(२) शिव रूप में १२ ज्योतिर्लिंग हैं। सिख मत में भी गुरुनानक रूप में भारत की कल्पना है, उनके खाट, दातून आदि के नाम से स्थान हैं।