माह-ए-रमज़ान मुबारक

ध्रुव गुप्त

माह-ए-रमज़ान जारी है. यह क़ुरआन शरीफ के दुनिया में अवतरण का महीना है और इसीलिए इसे इस्लामी कैलेंडर का सबसे पवित्र महीना माना गया है. इस महीने में पवित्र कुरआन का पाठ और रोज़ा मुसलमानों के लिए फ़र्ज़ है. मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के मुताबिक रोज़ा बन्दों के लिए आत्मशुद्धि, आत्मसंयम और दुनियावी आकर्षणों पर नियंत्रण रखने की साधना है.

 हमारा दुनियावी अस्तित्व जिस्म और रूह दोनों के समन्वय का नतीज़ा है. आम तौर पर हमारी ज़िन्दगी जिस्मानी ज़रूरतों जैसे भूख, प्यास, सेक्स आदि के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है. जिस रूह को हम भुलाए रहते हैं, माहे रमज़ान उसे पहचानने, महसूस करने और जगाने का आयोजन है. रूह से यह संवाद हो जाय तो जीवन की दिशा ही बदल जाती है. रोज़े में उपवास और जल- त्याग का मक़सद यह है कि आप दुनिया के भूखे और प्यासे लोगों का दर्द महसूस कर सकें. परहेज़ और ज़कात का अर्थ यह है कि आप अपनी दैनंदिन ज़रूरतों में थोड़ी-बहुत कटौती कर समाज के अभावग्रस्त लोगों की कुछ ज़रूरतें पूरी कर सकें.

 रोज़ा सिर्फ मुंह और पेट का नहीं होता. आंख, कान, नाक, ज़ुबान का भी होता है. मतलब कि बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो. रूह की पाकीज़गी की यह ज़रूरी शर्त है. जिसने यह पाकीज़गी हासिल कर ली है उसके लिए ज़नाब सरफ़राज़ शाहिद का यह शेर – 

‘शाहिद’ से कह रहे हो कि रोज़े रखा करे

 हर माह जिसका गुज़रा है रमज़ान की तरह.

 बाकी रोज़ेदारों के लिए रमज़ान अपने भीतर झांककर ख़ुद में सुधार का मौक़ा है. दूसरों को नसीहत देने के बजाय हम ख़ुद अपनी कमियों को पहचान कर उन्हें दूर कर सकें तो इस दुनिया के ज्यादातर मसले ख़ुद-ब-ख़ुद हल हो जाएंगे.
यह माह-ए-रमजान इस्लाम के मानने वालों को ही नहीं,समूची मानव जाति को संयम, प्रेम, करुणा, मानवता और भाईचारे का संदेश है. हिंसा, नफ़रत,स्वार्थ,भेदभाव, अमानवीयता, आतंक और अराजकता से भरी आज की दुनिया में रमजान का यह संदेश हमेशा से ज्यादा प्रासंगिक हैं. आपको माह-ए-रमज़ान की बहुत शुभकामनाएं, क़ुरआन मज़ीद की मेरे द्वारा अनुदित एक आयत के साथ :


सौगंध सूरज और उसके ताप की
सौगंध उस दिन की
जो सूरज को प्रकट करता है
सौगंध सूरज के पीछे आने वाले चांद की
रात की सौगंध जो सूरज को ढंक लेती है
सौगंध आकाश और उस सत्ता की
जिसने आकाश को स्थापित किया
उस धरती और उस सत्ता की
जिसने नीचे धरती को बिछाया
उस मानवीय आत्मा और उस सत्ता की
जिसने अच्छे-बुरे में फर्क़ करने वाली
तमाम ज्ञानेन्द्रियां
और बुराईयों से बचने की तमीज़ हमें दी
यहां सफलता यक़ीनन उसे ही मिलेगी
जिसने अपनी आत्मा को पवित्र
और विस्तृत कर लिया
जिसने अपने अंतरात्मा की आवाज़ दबा दी
उसके हिस्से असफलता के सिवा
और कुछ नहीं आने वाला.
(सूरा अश-शम्स)

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