– सुनील श्रीवास्तव

गांव आ गया,
याद आ गया सब कुछ हमको,
पटरी,करिखा, दुद्धी, घरिया याद आ गया.
सत्ती माई और डिह बाबा खोज रहा हूं,
अम्मां की तुलसी, कक्का का हुक्का याद आ गया.
संगी साथी पता नहीं अब गये कहां सब,
उनके साथ कबड्डी, छिपा-छिपउल याद आ गया.
दासपार का इनरा अब है नहीं लउकता,
दाल-भात का सना कटोरा याद आ गया.
समरसेट से सींच रहे हैं खेतों को अब,
गड़ही ,पुरवट, मोट, दोन सब याद आ गया.
धान कूटती सुबह मशीनियां दरवज्जे पर,
ओखरी जांता मूसर चकरी याद आ गया.
फसलों का वह दौर न जाने कहां खो गया,
जोन्हरी,सांवां ,साठी,जौ का याद आ गया.
दारू पीते, गाली देते, सड़कों पर लड़कों को देखा,
ऊखी का रस, मटर घुघुरिया याद आ गया.
पक्के घर, पक्की सड़कें घर-घर में बिजली ,
अपनी मड़ई, मेंड़ खेत की, लालटेन भी याद आ गया.
ट्रैक्टर लदी लाश के पीछे,कार और फटफटिया देखा,
राम नाम है सत्य और मुर्दहिया पैंड़ा याद आ गया.
आया यह चुनाव तव हमको,
झोपड़ी, दीपक, हल में बैल याद आ गया.