कुमार रूपेश
दतिया के बुंदेला राजाओं ने जल स्रोतों की व्यवस्था करने के उद्देश्य से अनेक कुंवे- बावड़ियों का निर्माण कराया था. राजा परीक्षत की बावड़ी उनमें से एक है. मध्य प्रदेश के दतिया के जिला अस्पताल परिसर के अंदर राजा परीक्षत के समय की एक विशाल बावड़ी है. 50 फुट व्यास वाली इस बावडी का निर्माण संवत 1865 सन 1807 ई. में रानी हीरा कुंअर ने करवाया था.
इसमें लगे हुए शिलालेख में जानकारी इस प्रकार अंकित है –
छप्पय – तादल प्रवल हरो सदा दतिया पति सामंत।।
इस वंस अवतंस भूप पारीक्षत राजत।।
तिहि वाम अंग अवतरि रमा पटरानी हीरा कुंवरि।।
गुन शील शोभा सदन जिहि समान कहियन अवर।।
दोहा – सासन सिर धरि, नृप की महारानी अभिराम।
बनबाई यह बावड़ी, वाग सुधा के धाम।।
संवत दस और आठ सौ, आगे पैंसठ लेख।
कार्तिक शुक्ला द्वादसी,सोमवार सुभ रेष ।।
इसके चारों ओर दालान बनी हुई है. ये दालान तीन मंजिला है. प्रत्येक मंज़िल में आगे- पीछे दो दल है. यह अष्टकोणीय बावड़ी है जिसकी प्रत्येक भुजा की दालान में मेहराबदार तीन दरवाजे आगे और तीन दरवाजे पीछे हैं.
ईंट, पत्थर और चूने से बनी इस बावड़ी में अथाह जल भरा हुआ है. दालानों में आगे की ओर पत्थर निर्मित हाथियों की मूर्तियां हैं जो बावड़ी की ओर सूंड किये हुए हैं. इस बावड़ी में चित्रकारी भी की गई है.
वास्तु कला और चित्र कला की दृष्टि से यह बावड़ी महत्वपूर्ण है और जल की दृष्टि से लोकोपयोगी भी.