लक्ष्मी-उलूक संवाद

लक्ष्मी-उलूक संवाद

अपनी गर्दन को पंखों में छुपाये उल्लू गहरी नींद का आनंद ले रहा था तभी लक्ष्मी जी ने आवाज लगायी, ‘‘वत्स, उठो! अपने पंखों को झाड़-पोंछ लो. दीपावली निकट आ रही है हमें पृथ्वी लोक के भ्रमण पर चलना है.’’

‘‘देवी, जाइए लंबी तान कर सो जाइए और मुझे भी चैन की नींद सोने दीजिये. पृथ्वीलोक जाने की कोई आवश्यकता नहीं है”, उल्लू कुनमुनाया.

‘‘कैसी बातें करते हो वत्स, दीपावली पर पृथ्वीलोक का भ्रमण कर मनुष्यों की दरिद्रता दूर करने की हमारी प्राचीन परंपरा रही है. उसमें व्यवधान उचित नहीं है”, लक्ष्मी जी ने समझाया

 ‘‘परम्परा क्या खाक है”, उल्लू ने आखें तरेरीं, फिर अपने स्वर को थोड़ा नम्र बनाता हुआ बोला, ‘‘दो बातें मैं अनादिकाल से देख रहा हूं. पहली यह कि आप मुझसे चक्कर तो पूरे पृथ्वीलोक का कटवाती हैं लेकिन आखिर में निवास किसी भारतवासी के घर में ही करती हैं.’’

‘‘क्योंकि भारतवर्ष की शस्य-श्यामला भूमि अत्यंत पतित-पावन है. इसीलिये वह अन्य देवताओं की तरह मुझे भी प्रिय है”, लक्ष्मी जी उल्लू की बात काटते हुए मुस्कुराईं.

‘‘पावन’ कितनी है यह तो नहीं जानता मगर ‘पतित’ होने की गारंटी तो मैं भी ले सकता हूं”, उल्लू ने अपनी आखें मिचमिचायीं फिर बोला, ‘‘दूसरी बात यह कि आप जिस भारतवासी के यहां निवास करती हैं उसके यहां आगे-पीछे इन्कम-टैक्स, ई.डी. या सी.बी.आई. का छापा जरूर पड़ता है. इसलिये सीधे उसी के घर चलिए, पूरे पृथ्वीलोक का चक्कर काटने से क्या फायदा?’’

‘‘व्यर्थ के तर्क मत करो. हम अपनी परंपराओं को नहीं तोड़ सकते. दीपावली की रात्रि मैं पूरी पृथ्वी का चक्कर काट किसी सुपात्र भारतवासी का चयन करूंगी फिर उसके यहां निवास अवश्य करूंगी”, लक्ष्मी जी का स्वर कड़ा हो गया.

‘‘उसके लिये मैं यहीं बैठे-बैठे सारी व्यवस्था कर देता हूं. बेकार की दौड़-भाग करने की जरूरत ही नहीं है”, उल्लू ने कहा.

 ‘‘कैसी व्यवस्था?’’

‘‘जिन-जिन भारतवासियों के यहां छापा पड़ चुका है या पड़ सकता है उनकी लिस्ट मैं यहीं मंगवाये देता हूं. आप उसमें से अपने पसंदीदा व्यक्ति का नाम शार्ट-लिस्ट कर लीजयेगा फिर सीधे उसी के घर चलते हैं”, उल्लू ने समझाया.

‘‘तुम यहीं बैठे-बैठै भारतवर्ष से लिस्ट मंगवा लोगे?’’ लक्ष्मी जी आश्चर्य से भर उठीं.

 ‘‘देवी, यह तो कुछ नहीं. अगर कोई और काम हो तो बतलाईये. भारतवर्ष की सारी व्यवस्था आज-कल अपने ही भाई-बंधुओं के हाथों में है”, उल्लू जीवन में पहली बार मुस्कराया.

‘‘नहीं-नहीं मुझे और कोई काम नहीं, तुम बस लिस्टें मंगवा दो”, लक्ष्मी जी ने कहा.

 उल्लू ने अपना मोबाईल निकाला. उस पर मैसेज टाईप किया ‘प्लीज सेंड द लिस्ट ऑफ़ वुड बी, शुड बी एंड कुड बी छापा विक्टिम्स टू लक्ष्मीदेवी.ब्रहांडमेल.डाट काम. उस मैसेज को अपने शुभचिन्तकों को फारवर्ड करने के बाद वह लंबी तान कर सो गया.

लक्ष्मी जी को उल्लू की बातों पर भरोसा तो नहीं हो रहा था मगर वह भी अपने निवास पर वापस लौट गईं. बहुत मुश्किलों से रात कटी. अगली सुबह जब उन्होंने अपना ई-मेल खोला तो पूरा मैसेज बाक्स भरा हुआ था. सभी मैसेज का सब्जेक्ट एक ही था ‘वुड बी, शुड बी एंड कुड बी छापा विक्टिम्स. लक्ष्मी जी ने एक मैसेज को क्लिक किया. अगले ही पल सरकारी कर्मचारियों की लिस्ट खुल गयी. लक्ष्मी जी माऊस ब्राउज करने लगीं. ब्राउज करते-करते उनकी कलाई दुखने लगी किंतु लिस्ट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी. खीज कर उन्होंने ‘कट्रोल एंड’का कमांड टाईप कर दिया. कर्सर झट से लिस्ट के आखिर में पहुंच गया. पूरी लिस्ट एक करोड़ से ज्यादा नामों की थी.

‘‘ओ माई गॉड, इतनी लंबी लिस्ट पढ़नी पडे़गी”, लक्ष्मी जी ने माथे पर छलक आये पसीने को पोंछते हुये दूसरे मैसेज को क्लिक किया. उसमें भारतवर्ष के 640 जिलों के फोल्डर अटैच्ड थे. उन्होंने एक जिले के फोल्डर को क्लिक किया तो उसमें 12,420 एन.जी.ओ. के नाम लिखे थे.

 ‘‘ओ माई गॉड, एक-एक जिले में इतने एन.जी.ओ. हैं तो पूरे भारतवर्ष में कितने होंगें?’’ लक्ष्मी जी ने घबराते हुये तीसरी फाईल को क्लिक किया. उसमें डाक्टरों के नाम अंकित थे. कुल संख्या 8,40,130 थी.

‘‘ओ माई गॉड! चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे के लोग भी छापेमारी की जद में आ गये”, लक्ष्मी जी की घबराहट कुछ और बढ़ गई. कांपते हाथों से उन्होंने अगले मैसेज को क्लिक किया. उसमें स्टेट-वाईज शिक्षकों की सूची अटैच्ड थी. कुल जमा 12 लाख से उपर नाम थे.

‘‘ओ माई गॉड! गुरू ब्रहा गुरू विष्णु, गुरू देवो महेश्वरा वाले देश में गुरू भी काली कमाई के फेर में पड़ गये”, लक्ष्मी जी हांफने सी लगीं. इतने नामों में से पात्र व्यक्ति का चुनाव कर पाना पृथ्वीलोक का चक्कर काटने से कहीं ज्यादा कठिन था. वे ई-मेल बंद करने जा ही रही थीं कि तभी उनकी द्रष्टि अगले मैसेज पर पड़ गयी. उस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था ‘लीडर्स फ्राम इंडिया’.

यह लिस्ट तो बहुत छोटी होगी. चलो इसे भी देख लिया जाये. सोचते हुये लक्ष्मी जी ने उस मैसेज को क्लिक कर दिया. उन्हें भारतवर्ष के नेताओं की ईमानदारी पर बहुत भरोसा था. फाईल खुल गयी. लक्ष्मी जी का अंदाजा सही निकला. वह लिस्ट बहुत छोटी थी. एक पेज पर बस चंद नेताओं के नाम दर्ज थे.

‘‘थैंक गॉड! कुछ तो अच्छा दिखा”, लक्ष्मी जी ने राहत की सांस ली. तभी उनकी दृष्टि उस लिस्ट के नीचे लिखे नोट पर पड़ गयी. उसमें बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था ‘नेताओं की लिस्ट बहुत बड़ी है. उसे इतनी जल्दी बना पाना संभव नहीं है. इसलिये केवल उन नेताओं की लिस्ट भेजी रहा है जिनके यहां छापा पड़ने की फिलहाल संभावना नहीं है. बाकी आप स्वयं समझदार हैं.’

‘ओ माई गॉड”, लक्ष्मी जी के मुंह से एक बार फिर वही तीन शब्द निकले और वे बेहोश हो गईं.

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