सरप्राइज़

रवि ऋषि

child holding brown and green wooden animal toys
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नन्हा बंटी अब दो साल का होने को आया था. ऋतिक और रानी दोनों सुबह जल्दी काम पर निकलते थे सो नन्हे बंटी को घर से कुछ दूर एक डे केयर सेंटर में छोड़ कर जाना पड़ता था. आजकल यदि पति-पत्नी दोनों न कमाएं तो गुज़ारा करना मुश्किल है. उसके अलावा पश्चिम के देश में आया इत्यादि का खर्चा और नखरे उठाना हर किसी के बूते की बात नहीं होती. दो साल के नन्हे बालक को मुंह अंधेरे जगाकर तैयार करके कहीं ले जाना कितना दुष्कर कार्य होता है, ये वही जानते हैं जो इस स्थिति का सामना कर रहे होते हैं. रोज़ तरह-तरह के प्रलोभन देकर मनाने के प्रयास के बावजूद नन्हे बंटी को तैयार करना टेढ़ी खीर होता. सबसे बड़ा प्रलोभन होता, शाम को डे केयर से लौटते हुए पापा या मम्मी द्वारा एक सरप्राइज़ देने का. आमतौर पर यह सरप्राइज़ कोई खिलौना या चॉकलेट इत्यादि ही होता था. डे केयर के दरवाज़े से निकलते ही नन्हा बंटी पूछ बैठता,”सरप्राइज़!”

रोज़ ही छुट्टी के समय डे केयर से लेने आए मम्मी या पापा के हाथों में कोई छोटा सा उपहार देखकर उस नन्हें फरिश्ते की आंखों में एक अद्भुत चमक और चेहरे पर एक निश्चल मुस्कान फैल जाती.

 कुछ समय हुआ रानी के माता-पिता भारत से कुछ समय उनके पास रहने आए थे. मां बहुत देर से अपने नाती को देखने और उसके साथ कुछ समय बिताना चाहती थीं. सो बच्चों ने टिकट भिजवाकर और हवाई यात्रा की अन्य औपचारिकताएं पूरी कर सारा प्रबंध कर दिया था. नन्हें बंटी को तो मानो मन मांगी मुराद मिल गई थी. पाश्चात्य देशों में सामाजिक परिवेश भारत से बिलकुल भिन्न है. यहां सामाजिक मिलना- मिलाना बेहद कम होता है. हर कोई अपनी निजी ज़िंदगी में मस्त. ऐसे में बंटी को खेलने के लिए दो पूर्णकालिक साथी मिल गए थे.

वृद्ध नाना-नानी के लिए भाषा एक समस्या अवश्य थी किंतु ममता की अपनी एक सार्वभौमिक भाषा होती है और यह भाषा संसार का प्रत्येक प्राणी बखूबी समझ और बोल लेता है. कुछ ही समय में नन्हा बंटी नाना- नानी के साथ खूब घुलमिल गया था. नन्हे नाती के साथ नाना-नानी का बचपन भी जैसे फिर से लौट आया था. अक्सर दोनों में से कोई दामाद या बेटी के साथ उनकी कार में बंटी को डे केयर से लेने चला जाता और जब बंटी डे केयर से निकलते ही “सरप्राइज़” के बारे में पूछता तो उनके ही हाथों से कोई खिलौना पाकर बंटी की खुशी का ठिकाना न रहता. वैसे खिलौना मिलने से ज़्यादा खुशी उसे कार में उपस्थित मां को देखकर होती थी, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था. बंटी बाकी समय चाहे नाना-नानी के साथ घुलमिल कर रहता लेकिन रात को सोने के लिए उसे मां का सानिध्य अनिवार्य रूप से चाहिए होता था. मां से एक अंग्रेज़ी लोरी सुनते-सुनते बंटी कब सो जाता था, पता ही नहीं चलता था.

फिर अचानक एक दिन एक समस्या आ खड़ी हुई थी. रानी को ऑफिस की ओर से एक कॉन्फ्रेंस के सिलसिले में चार-पांच दिन के लिए एक दूसरे शहर में भेजा जा रहा था. क्षेत्रफल के हिसाब से यह बहुत बड़ा देश था. उस शहर तक ही लगभग छह घंटे की फ्लाइट थी. और फिर बंटी? हालांकि ऋतिक छोटे बच्चे की देखरेख में हर प्रकार से निपुण था और हर प्रकार का सहयोग देता था किंतु रात को बंटी के सोने के समय मां की अनिवार्यता का कोई हल उसे भी नहीं सूझ रहा था. यह सब सुनकर वृद्ध नानी तो अपना आपा ही खो बैठी थीं,

“क्या आफ़त आ जायेगी अगर नहीं जाओगी तो? दफ्तर वालों को कह दो कि मैं इतने छोटे बच्चे को छोड़कर इतने दिन तक नहीं रह सकती. आग लगे ऐसी नौकरियों को.  बच्चा बीमार हो जायेगा तो दफ्तर वाले भरेंगे?”

रानी बूढ़ी मां को किसी भी प्रकार से समझा नहीं पा रही थी कि ऐसा कर पाना यदि संभव होता तो वह पहले ही मना कर देती. लेकिन मां लगातार लाल-पीली होकर बड़बड़ाती रही थीं. एक-दो बार तो अपना गुस्सा पति पर भी उतार दिया था,

“आप क्यों गूंगे बने बैठे हैं? कुछ बोलते क्यों नहीं?”

वृद्ध नाना चुपचाप सीढ़ियां चढ़कर ऊपर वाले कमरे में चले गए थे.

 बंटी के डे केयर से आने से पहले रानी एयरपोर्ट के लिए निकल गई थी. बंटी के सामने निकलना कितना कठिन होता, यह वह भली भांति जानती थी. वैसे भी छह बजे की फ्लाइट के लिए और अधिक देर करना उचित नहीं था.

ऑफिस से जल्दी निकलकर आज ऋतिक बंटी को लेने डे केयर गया था. रास्ते से कुछ चॉकलेट और खिलौने लेना नहीं भूला था. बंटी डे केयर के कांच के पारदर्शी दरवाज़े के पीछे खड़ा इंतज़ार कर रहा था. दरवाज़ा खुलते ही वह कार की ओर लपका तो ऋतिक ने बड़े प्यार से पूछा था,

“बंटी को क्या सरप्राइज़ चाहिए?”

“मम्मा”, बंटी ने कार के दरवाज़े के हैंडल को खींचते हुए उत्तर दिया था.

नन्हे बालक को इधर-उधर की बातों में लगाकर ऋतिक उसे घर तो ले आया लेकिन ज्यों-ज्यों रात गहराने लगी, नन्हे बंटी ने आसमान सर पे उठा लिया. उसने अपने दूध की बोतल भी उठाकर फेंक दी थी. बंटी जब किसी भी प्रकार से शांत नहीं हुआ तो हारकर ऋतिक ने रानी को वीडियो कॉल लगाई. रानी की फ्लाइट कुछ लेट थी सो बात हो सकती थी. रानी ने स्वयं को संयमित करते हुए बंटी से बात शुरू की थी,

“बंटी बच्चे, मैं बस तीन दिन में आ जाऊंगी. आप अच्छे बच्चे हो ना? चलो निन्नी कर लो पापा के साथ.”

बंटी की हिचकी बंधी हुई थी. नन्हे बालक की बड़ी-बड़ी आंखों से आंसुओं की झड़ी लगी हुई थी. वह केवल एक ही रट लगाए जा रहा था,

“मम्मा कम बैक, मम्मा प्लीज़ कम बैक.”

रानी ने दूसरा दांव चला था,

“अच्छा चलो, आप निन्नि करो, मैं आपको पोएम सुनाती हूं, यू आर माई सनशाइन.”

“नो मम्मा, आई डोंट वांट टू टॉक टू यू. यू जस्ट कम बैक. कम बैक राइट नाउ.”

रानी देर तक बंटी को तरह-तरह से दुलारकर सांत्वना देने का प्रयास करती रही थी. लेकिन नन्हा बालक किसी भी प्रकार मानने को तैयार नहीं था. फ्लाइट की घोषणा होने के बाद फोन कट गया था. घर के बाकी सदस्यों से नन्हे शिशु की यह स्थिति देखी नहीं जा रही थी. नानी तो दुपट्टे में मुंह छुपाकर सुबकने भी लगीं थीं. ऋतिक देर रात तक बच्चे को बहलाकर सुलाने का भरसक प्रयत्न करता रहा था. नन्हा शिशु जब रो-रो कर थक गया तो न जाने कब उसकी आंख लग गई.

 लगभग आधी रात के बाद अचानक डोर बेल बजी तो ऋतिक हैरान सा मेन डोर की ओर लपका. यहां ऑनलाइन डिलीवरी वाले किसी भी समय सामान देने आ जाते हैं. पर आधी रात को डोर बेल बजाना? पहले ही परेशान ऋतिक को गुस्सा आ गया था. उसने जल्दी से दरवाज़ा खोला तो बूढ़े नाना-नानी भी आंखें मलते हुए पीछे-पीछे चले आए थे. दरवाज़ा खुला तो सामने हाथ में सूटकेस लिए रानी खड़ी थी.

” क्या हुआ?” ऋतिक ने हैरान होते हुए पूछा था.

” कुछ नहीं, मैं नहीं गई,” रानी ने मुस्कुराते हुए अंदर प्रवेश करते उत्तर दिया था.

“स र प्रा इ ज़…..” ऊपर के शयनकक्ष से बंटी का चहकता हुआ तोतला स्वर सारे घर में फैल गया था.

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