– विनीता गुप्ता
हे! तरुवर, हे! महा विटप तुम स्वीकारो मेरा वंदन.
तृण पौधे और लतिकाऐं, तुमको भी मेरा अभिनंदन.
प्राण वायु के अमिट कोष तुम,
औषधियों से भरे हुए.
विहग वृंद के आश्रय हो तुम,
सुंगंधियों से पगे हुए.
श्रान्त पथिक विश्राम करें जब, देते छाया तुम नंदन.
हे! तरुवर, हे! महा विटप तुम, स्वीकारो मेरा वंदन.
हरित पत्र से सदा सुशोभित,
अति संपन्न फलों फूलों से.
सावन के आते ही देखो ,
शाखें सज जाती झूलों से.
वर्षा की बूंदों संग करते ,धरती मां का आलिंगन.
हे! तरुवर, हे! महा विटप तुम ,स्वीकारो मेरा वंदन.
मेघों को आकर्षित करके,
देते वर्षा को आमंत्रण.
तृषित धरा की प्यास बुझाते,
भूमि क्षरण को करे नियंत्रण.
करता कोई यदि प्रहार तो, शीश झुका करते अर्चन.
हे! तरुवर, हे! महा विटप तुम, स्वीकारो मेरा वंदन.
हरा भरा करते धरती को,
देते सबको सुख भरपूर.
मनुज देव सब करते पूजन,
विपदा से रहते वे दूर.
द्वारे द्वारे वृक्ष लगाएं, करें नियम से जल सिंचन.
हे! तरुवर, हे! महा विटप तुम, स्वीकारो मेरा वंदन.
Leave a Reply