Pehachaan पहचान

Category: Poetry

  • अंतिम ईंट

    अंतिम ईंट

    (कमल जीत चौधरी): अपनी ऊंची बस्ती में, अपने से कम रन्दों वाले

  • एक पीपल के न रहने पर

    एक पीपल के न रहने पर

    (माया मृग): मैं पीपल हूं कब से हूं, पता नहीं

  • चार ग़ज़लें

    चार ग़ज़लें

    (अना क़ासमी): आज पहली बार बेटी ने पकाई रोटियां. टेढ़ी-मेढ़ी मोटी पतलीं कच्ची पक्की रोटियां.

  • चार ग़ज़लें

    चार ग़ज़लें

    (अतुल अजनबी): हवा सी, आग सी, पानी सी, धूप सी गुज़री. हर इम्तिहां से यहां अपनी ज़िन्दगी गुज़री.

  • चार ग़ज़लें

    चार ग़ज़लें

    (सोम नाथ गुप्ता “दीवाना रायकोटी”): हक़ीक़त से भला कौन मुंह मोड़ के जिया है.

  • जग को यह स्वीकार नहीं है

    जग को यह स्वीकार नहीं है

    ( डॉ. निधि सिंह): प्रिय, मत भेजो मुझे संदेसे, जग को यह स्वीकार नहीं है.

  • ज्योतिर्मय हो जग सारा

    ज्योतिर्मय हो जग सारा

    (डॉ. निधि सिंह): नव युग मंगल किरणों का सर्वत्र व्याप्त उजियारा.

  • पर्यावरण गीत

    पर्यावरण गीत

    (विनीता गुप्ता): हे! तरुवर, हे! महा विटप तुम स्वीकारो मेरा वंदन.

  • जय श्री राम

    जय श्री राम

    (विनीता गुप्ता): भारत की माटी का हर कण राम नाम अब बोल रहा.

  • आज़माइश अभी बाक़ी है

    आज़माइश अभी बाक़ी है

    (आशीष शर्मा (इंडोनेशिया)): बातों में, नारों में, तक़रीरों में, हिंदुस्तान की बात करते हैं सब

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