Pehachaan पहचान

Category: Poetry

  • ”जीवन”

    ”जीवन”

    (तूलिका गणपति मिश्रा): तरसें उससे पहले जी लें, ज़िन्दगी को अर्थ एक दे दें

  • गणपति

    गणपति

    (तूलिका गणपति मिश्रा): हे गणपति, देती आमंत्रण झुकाकर शीश, पधारो घर देने आशीष

  • तुम हो

    तुम हो

    (कमल जीत चौधरी): तुम हो तो कागज़ के शहर में भी फूलोत्सव है,

  • अंतिम ईंट

    अंतिम ईंट

    (कमल जीत चौधरी): अपनी ऊंची बस्ती में, अपने से कम रन्दों वाले

  • एक पीपल के न रहने पर

    एक पीपल के न रहने पर

    (माया मृग): मैं पीपल हूं कब से हूं, पता नहीं

  • चार ग़ज़लें

    चार ग़ज़लें

    (अना क़ासमी): आज पहली बार बेटी ने पकाई रोटियां. टेढ़ी-मेढ़ी मोटी पतलीं कच्ची पक्की रोटियां.

  • चार ग़ज़लें

    चार ग़ज़लें

    (अतुल अजनबी): हवा सी, आग सी, पानी सी, धूप सी गुज़री. हर इम्तिहां से यहां अपनी ज़िन्दगी गुज़री.

  • चार ग़ज़लें

    चार ग़ज़लें

    (सोम नाथ गुप्ता “दीवाना रायकोटी”): हक़ीक़त से भला कौन मुंह मोड़ के जिया है.

  • जग को यह स्वीकार नहीं है

    जग को यह स्वीकार नहीं है

    ( डॉ. निधि सिंह): प्रिय, मत भेजो मुझे संदेसे, जग को यह स्वीकार नहीं है.

  • ज्योतिर्मय हो जग सारा

    ज्योतिर्मय हो जग सारा

    (डॉ. निधि सिंह): नव युग मंगल किरणों का सर्वत्र व्याप्त उजियारा.

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