Pehachaan पहचान

Category: Poetry

  • प्रेम और जंगल

    प्रेम और जंगल

    (मधु सक्सेना): मन के न जाने किस जंगल में पलाश फूला कि झर गई सब विषाद की पत्तियां

  • एक अनुत्तरित प्रश्न

    एक अनुत्तरित प्रश्न

    (निशा कुलश्रेष्ठ): तुम  दिन भर करती क्या हो? हां, मैं सचमुच दिन भर करती भी क्या हूं?

  • तुम्हारी आंखों में छुपे मसौदे

    तुम्हारी आंखों में छुपे मसौदे

    (मुकेश इलाहाबादी): दुनिया कि सारी भाषाएं सीख भी लूं तो भी नहीं पढ़ सकता

  • याद आ गया गांव

    याद आ गया गांव

    (सुनील श्रीवास्तव): गांव आ गया, याद आ गया सब कुछ हमको,

  •  बाजरे का पौधा

     बाजरे का पौधा

    (मालिनी गौतम): गमले में अपने आप ही उग आया था

  • ग़ज़ल

    ग़ज़ल

    (अजय अज्ञात): कल भी ये अधूरी थी, आज भी अधूरी है. इश्क़ के बिना यारो, ज़िन्दगी अधूरी है. जगमगा रहा है घर, जगमगाते बलबों से ज़ेहन में…

  • ग़ज़ल

    ग़ज़ल

    (प्रवीन राय): थक चुके हैं यहां पे चल-चल के.अब तो मेहमां हैं एक दो पल के.

  • ”जीवन”

    ”जीवन”

    (तूलिका गणपति मिश्रा): तरसें उससे पहले जी लें, ज़िन्दगी को अर्थ एक दे दें

  • गणपति

    गणपति

    (तूलिका गणपति मिश्रा): हे गणपति, देती आमंत्रण झुकाकर शीश, पधारो घर देने आशीष

  • तुम हो

    तुम हो

    (कमल जीत चौधरी): तुम हो तो कागज़ के शहर में भी फूलोत्सव है,

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