Folk Art/ Literature

हरछठ

हमारे आसपास लोक की अनेक कथाएं बिखरी हुई हैं. कुछ कथाओं को धार्मिक ग्रंथों ने सहेज लिया है, कुछ में मिथक शामिल हो गए हैं. ऐसी ही एक कथा है ‘हरछठ’ या ‘हलषष्ठी’ की. प्राचीन पितृसत्तात्मक समाज में पुत्र का महत्व इस तरह स्थापित किया गया कि बिना पुत्र के उद्धार नहीं है. स्त्री से […]

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पुतरी पूजन

“पुतरी पूजन कैसें जाऊं री,बरा तरें आ गए लेवऊआ.पहले लेवऊआ ससुर जी आये,ससुरा के संग नही जाऊं री,बरा तरें आ गए लेवऊआ.दूजे लेवऊआ जेठ जी आये,जेठा के संग नहीं जाऊं री,बरा तरें आ गए लेवऊआ.तीजे लेवऊआ देवर जी आये,देवरा के संग नही जाऊं री,बरा तरें आ गए लेवऊआ.चौथे लेवऊआ ननदोई जी आयेननदोई के संग नही

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बुंदेलखंड का नौरता

हमारा देश त्यौहारों का देश है. कुछ तो जगज़ाहिर त्यौहार हैं, कुछ ऐसे त्यौहार भी हैं जो अपने क्षेत्र विशेष के लिये तो बहुत महत्वपूर्ण हैं लेकिन उनकी राष्ट्रीय परिदृश्य पर कोई चर्चा नहीं होती. असल में इस तरह के त्यौहार, किसी न किसी बड़े त्यौहार का ही अहम हिस्सा होते हैं. जैसे ब्रज और

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रक्कस बाबा

रजनी अरजरिया हमारे जुझौतीखंड में अनेक प्रकार के ग्राम देवी देवताओं की पूजा होती है जैसे लाला हरदौल, कारस देव, गोंड बाबा, ठाकुर बाबा आदि. ऐसे ही एक लोक देवता रक्कस बाबा माने जाते हैं. यहां पर उनके प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास देखा जाता है. रक्कस स्थानीय शब्दावली है रक्षक तत्सम है. यहां पर

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सतुआन

ध्रुव नारायण गुप्त बिहार, झारखंडऔर पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक लोकपर्व होता है सतुआन. इसे लोग सतुआ संक्रांति या बिसुआ भी कहते हैं. बिहार के अंग क्षेत्र में यह पर्व ‘टटका बासी’ के नाम से जाना जाता है. कुछ लोग इस दिन के साथ पूजा-पाठ का कर्मकांड भी जोड़ देते हैं, लेकिन सतुआन वस्तुतः आम

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बसंत का पहला दिन है नवरोज (ईरान की यादें)

पर्शियन संस्कृति में नव वर्ष (नवरोज) सोलर हिजरी कैलेंडर के अनुसार बहार (बसंत) का पहला दिन है. 21 मार्च  को नवरोज ईरान ,टर्की, सीरिया इराक एवं खुर्द समाज में धूमधाम से मनाया जाता है, पर्व में होली का उल्लास चैत्र मास के नवरात्रों ,बैसाखी एवं ईस्टर का आभास नजर आता है. मुगलकालीन बादशाह अकबर के

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सोहराय: पशुओं के प्रति आभार प्रकट करने का त्योहार

सुजाता कुमारी दिवाली के दूसरे दिन जब शेष भारत गोवर्धन पूजा करता है, उसी दिन से आदिवासियों का सोहराय पर्व प्रारंभ हो जाता है. पांच दिनों तक चलने वाले इस पर्व का संबंध सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है. आदिवासी समाज के इस महान पर्व को लेकर झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा आदि

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गणगौर   

गणगौर राजस्थान का प्रमुख त्यौहार है. सभी विवाहित स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं इस त्यौहार को बहुत ख़ुशी और उल्लास के साथ मनाती हैं. गणगौर का त्यौहार भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. इसमें गण का अर्थ भगवान शिव है और गौर का अर्थ गौरी मतलब माता पार्वती है. सोलह दिन का यह त्यौहार

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राजस्थान की हरियाली तीज

राजस्थान त्योहारों की धरती है. यहां समय-समय पर मनाये जाने वाले त्योहार व मेले आम जन-जीवन में नवीन उत्साह वह उमंगों का संचार करते हैं. भारतीय संस्कृति में पर्वों का विशेष स्थान रहा है. हमारे राजस्थान में एक कहावत प्रचलित है-“तीज त्योंहारा बावडी,ले डूबी गणगौर”यानी कि राज्य में श्रावण मास की शुक्ल तृतीया से त्योहारों

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फूल देई, छम्मा देई

पाकिस्तान के उस इलाके के रहने वाले जहां अफगानिस्तान खत्म होता है और हिंदुस्तान शुरू, सरहद के फिल्मकार और लेखक सागर सरहदी की फिल्म “बाज़ार” (1982), जो स्मिता पाटिल की बेहद कामयाब फिल्म भी रही, में मकदूम मोहिउद्दीन की मकबूल ग़ज़ल रही- “फिर छिड़ी रात बात फूलों कीरात है या  बारात फूलों की.फूल खिलते  रहेंगे

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