Ghazal

ग़ज़ल

1.छत पर बैठे-बैठे तुमसे जीभर बतियाने के बादखिल उठता हूं, जैसे पत्ते बारिश थम जाने के बाद.पानी तन को धो देता है, मन को धोती है पूजामेरा तन-मन धुल जाता है तेरे मुस्काने के बाद.तुमको पाकर मेरा चेहरा खिल-खिल उठता है ऐसेजैसे बच्चा खिल उठता है मोबाइल पाने के बाद.पेड़ पे बैठे पंछी खुलकर हंसते-गाते […]

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ग़ज़ल

1.घर से मैं दश्त की वीरानी अलग रखता हूंकाम मुश्किल है ब-आसानी अलग रखता हूं.तब मिरी ज़ात में कुछ भी नहीं होता है नुमूअपनी इस ख़ाक से जब पानी अलग रखता हूं.एक जैसे नहीं होते हैं यहां दो मंज़रसुब्ह से शाम की हैरानी अलग रखता हूं.है क़बा तेरी अलग मेरी क़बा से जैसेतेरी उर्यानी से

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ग़ज़ल

1. मैं न जीता हूं, तू न हारी है ज़िंदगी तुझसे जंग ज़ारी है. कितनी हल्की हैं मेरी सब ग़जलें एक रोटी भी इनसे भारी है. फ़र्ज़ पूरा किया चराग़ों ने आगे सूरज की ज़िम्मेदारी है. मीर पत्थर जो रोज़गार का है इश्क़ से भी ज़्यादा भारी है. इसको भी फ़न समझ रहे हैं लोग

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ग़ज़ल

1.जय हिंद, जय भारतवतन पर जां मेरी कुर्बान है, जय हिंद, जय भारत.मेरा दिल मेरा हिंदुस्तान है, जय हिंद, जय भारत.जहां के इस फ़लक को तुम ज़रा अब गौर से देखो,मेरी माटी की इक पहचान है, जय हिंद, जय भारत.यहां वेदों, पुराणों की सदा वाणी हुई निसृत,यहां कण-कण में गीता-ज्ञान है, जय हिंद, जय भारत.रखेंगी

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विदेशों में ग़ज़ल

1.कैसे मुमकिन है, ख़मोशी से फ़ना हो जाऊं.कोई पत्थर तो नहीं हूँ कि ख़ुदा हो  जाऊं.फ़ैसले सारे उसी के हैं, मिरी बाबत  भी,मैं वो  औरत हूं कि राज़ी-ब-रज़ा हो  जाऊं.धूप में साया, सफ़र में हूं क़बा फूलों की,मैं अमावस में सितारों की ज़िया हो  जाऊं.मैं मुहब्बत हूं, मुहब्बत तो नहीं मिटती है,एक ख़ुश्बू हूं, जो

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विदेशों में ग़ज़ल

1.याद फिर से आज उनकी आ गईसाथ बीते दिन वही दोहरा गईदिन पसीना बन जला जब धूप मेंरात शीतल चांदनी बिखरा गईएक आंधी फिर गुजरकर पास सेज़ोर से ये दिल मेरा धड़का गईहमने जिस उम्मीद पर रक्खा यक़ींमुश्किलों को और भी उलझा गईहम लिये बैठे रहे नाराज़गीकरके मीठी बात वो बहका गईकल हमारा है कहा

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विदेशों में ग़ज़ल

1.पास आकर जो दूर होता है.उसका अपना ग़ुरूर होता है.इश्क़ ही जाम हो या साक़ी हो,सबका अपना सुरूर होता है.पार कर ले घने जो अंधेरे,उसके माथे पे नूर होता है.चांद तारे बिछा दूं पैरों में,ये भी कैसा फितूर होता है.कुछ तो होती है बदगुमानी भी,वक़्त का भी कुसूर होता है.वो जो धड़कन में ही ठहर

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विदेशों में ग़ज़ल

1.न जाने मन में मेरे इतनी बेकली क्यूं हैवो जो मेरा था कभी आज अजनबी क्यूं हैगरज उठा है ये बादल कड़क रही बिजलीहुआ है क्या कि ये दोनों में यूं ठनी क्यूं हैबता दे आज हमें कोई तो ज़रा इतनादुखों की रात ही होती सदा घनी क्यूं हैहां देखने में तो लगते हैं ख़ूबसूरत

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विदेशों में ग़ज़ल

1.अंधेरों में उजाले छुपा दिये जाते हैं कईरिश्तों की आड़ में गुनाह करते हैं कई.कोई तो किताब होगी जो बता दे, क्योंहंसने की आरज़ू में अश्क़ पीते हैं कई.छोटी- छोटी बातें गर दिल में ही रह जायेंतो यारो जीते जी मर जातें रिश्ते हैं कई.आशिक़ों की बात ना पूछो तो अच्छा हैगमों से लिपटे बिता

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हिंदी भाषा में ग़ज़ल

1.यूं  कहने  को  बहकता  जा रहा हूं.मगर  सच  में  संभलता जा रहा हूं.उलझता जा रहा हूं तुझमें जितना,मैं  उतना  ही सुलझता जा रहा हूं.भले बाहर से दिखता हूं  मचलता,मगर  भीतर  ठहरता  जा  रहा  हूं.ज़मीं  से  पांव  भी  उखड़े  नहीं  हैं,फ़लक तक भी मैं उठता जा रहा हूं.नदी इक मुझमें मिलती जा रही है,मैं  सागर-सा  लहरता

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