Hindi Abroad

पहली मोहब्बत

कहते हैं पहली मोहब्बत बड़ी पाकीज़ा होती है, बड़ी मासूम होती है, और वो मोहब्बत होती है मां की मोहब्बत, मां की दुआएं अर्श तक जाती हैं, उसके पांव में जन्नत है, उसकी गोदी में अजीब सा सुक़ून है. ज़ुबान से पहला लफ्ज़ भी मां ही निकलता है. फिर उसी पहली मोहब्बत को, उसी जन्नत को,उसी सुक़ून को,  उंगली पकड़ कर क्यों छोड़ आते हो वृद्धाश्रम, क्यों दुनियां के मेले में खोकर भूल जाते हो अपनी पहली मोहब्बत, क्यों वो अमृत सा दूध, क्यों वो बिस्तर की नमी, क्यों वो काजल का टीका, क्यों रातों के रतजगे मां के भूल जाते हो? जिसने छोड़ दी सारी दुनियां, सारी खुशियां तुम्हारी मोहब्बत में, उस पहली मोहब्बत को क्यों बेगानों में छोड़ आते हो? क्यों उन आंखों की वीरानी तुम समझ नहीं पाते और उसकी मोहब्बत के एवज़ में चंद काग़ज़ के टुकड़े फेंक आते हो. अरे, तुम तो क़ाबिल ही नहीं हो  उस मोहब्बत के, वो गीता के श्लोक सी मोहब्बत, वो क़ुरआन की आयत सी मोहब्बत, उसे तुम ग़ैरों के हाथों में क्यों कर सौंप आते हो? सुना है बड़ी मन्नत से मांगती है रब से मां दामन फैलाकर बेटों को, ख़ुदाया! अगर यही है मोहब्बत पहली तो दुआ करती हूं, हर मां बांझ हो जाये जवानी कर दी ख़र्च, बच्चों की परवरिश में क्या इसलिए कि बुढापा वृद्धाश्रम में नीलाम हो जाये?

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आज़ादी और नव-चेतना

आज़ादी तेरी आन का सदक़ा,मातृभूमि के मान का सदक़ा,भारत मां की जय का नारा,शंखनाद से हो जयकारा,जन-जन जागे,कण-कण जागे,रोम-रोम में ज्वाला जागे,बच्चा-बच्चा दे हुंकारा,लाओ कहीं से वो चेतना,नव-साधना, नव-प्रेरणा.आज़ादी की राहों में,कोई आंच न आने देंगे हम,मर जाएंगे मिट जाऐंगे,राष्ट्र न मिटने देंगे हम,आज़ादी की ख़ातिर,अपने प्राणों की क़ुरबानी दें,देश की ख़ातिर जन्मे हैं,और देश

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आज़माइश अभी बाक़ी है

बातों में, नारों में, तक़रीरों में,हिंदुस्तान की बात करते हैं सब,सच्ची मोहब्बत कितनों को,ये आजमाईश अभी बाक़ी है.अनेकता में एकता का ज़िक्र,हर महफ़िल में,अमल को कितने हैं तैयार,ये आज़माइश अभी बाक़ी है.इसकी मिट्टी में रंगने की बात,हर कोई करता,फ़ना होने को कितने हैं तैयार,ये आज़माइश अभी बाक़ी है.कौन है वो – मेरा अपना या पराया

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