Poem

ईशरा! अंदर आओ

आपको एक बहुत भोली कविता से परिचित करवाते हैं. इस कविता की ये पंक्तियां मेरी पिछली पीढियों द्वारा विकसित की गयी लुप्त होती स्थानीय भाषा में उस आश्वासन से संवाद की कोशिश है, जिसे हम-आप शिव कहते हैं. दुनिया के लिए यह मंदिरों में रहता होगा लेकिन मेरे लोग तो वक्त की किसी बेनाम तारीख […]

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देव उठ गए

उठ गए तुम देव?इंतज़ार था.उठो तो शुरू होजगत कल्याण का काम.करो विवाह, तारो वृंदा कोविवाह का मतलब हीतारने से है.विवाह हो जाना यानेलड़की का तर जाना,उसके माता- पिता का तर जाना,तभी तो पूज दिए वर के पैरदान कर दी कन्याकन्यादान का पुण्य ले लिया.इस बार उठे हो तोकुछ तो नया करोसहमति ले लो एक बार

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सावन के मायने

चौखट पर खड़ी औरतबाट जोहती हैकभी पिता कीकभी पति कीकभी पुत्र कीसबसे पुराना रिश्ता हैपिता सेफिर पति सेपिता ने विदा कियासौगंध खिला करचुटकी भर सिंदूर कीमां ने दिलाई यादसंस्कारों कीआशीष दियादूधो नहाने औरपूतों फलने कीसब कुछ आंचल में रखसदियों से वह आ रही हैसजते-संवरतेवही चिटुकी भर सिंदूरसिंधोरा सेमांग में भरतेकहां हैं झूले,मेहंदीसखियों की ठिठोलीभाभी की

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छठ

ओम राजपूत छठवो पर्व हैजिसमें धमनियों का सारा रक्तएकबार के लिएहृदय की ओर मुड़ जाता है.रिश्ते जिंदा हो जाते हैं.इससेगिरमिटिया कोदेस लौटने काअवसर मिल जाता है.रिश्तों पर जमी धूल झड़ जाती है.आस्था का अभिकेंद्रअपना गांव अपना देस हो जाता है.हम खिंचे चले आते हैं.इस पर कि हमभलेबहुत ही पढ़ लिए होंऔर हो गए होनास्तिकविद्वानकोई सीईओप्रोफेसरआईआई

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1. एक पल के लिए कृतज्ञ हूं

उस एक पल से बुनी चादरऔर ढंक दिए सब दुखपरदे मेंं रहें दुख तो भेद नहीं रहता सुख और दुख में.मां कहती थी सुख सूखे होते हैं दुख गीलेजब धूप तेज हो दुखों को परदे में रखना.उस पल को उठाकर रख दिया पेड़ परहरे पत्तों के बीच हरा रहेगा हमेशा.सींचना पेड़ की जड़ को होता

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1. कि इस रस्म को उलट दूं

घर तुम्हारा भी था घर मेरा भी था. मेरे हिस्से में खेल और खिलौने थे बिस्तर पर चाय थी टेबल पर खाना था धुले हुये कपड़े थे आने-जाने, खाने-पीने, बोलने-सुनने की आजादी थी मतलब एक इंसान से ज्यादा कुछ था. तुम्हारे हिस्से में चूल्हा-चौका था ये करो, वो ना करो वाली हिदायतें थीं   खिड़कियां थी मगर दरवाज़े नहीं थे. मै वंशधर था, वारिस था तुम लाड़ली होकर भी धन थी मगर वो भी पराया. मैं बड़ा था तुम छोटी थीं. लेकिन ये तुम्हारा बड्डपन था जो एक बेताल को अपने कंधो पर बिठाये रहीं. मैं बुरा नहीं था. मैंने वही सीखा था जो मैंने देखा था तब जो अक्ल घास चरने गयी थी अब जब वापस लौटी है तो पछतावे की परछाइयों तले बैठकर जुगाली करती है. आज भी मेरी जिम्मेदारियों का दायरा फोन तक सिमटा है तुम आज भी मेरे हिस्से का फर्ज़ और कर्ज़ अपना समझ का चुका रही हो. आज भी जब तुम कलाई पर भावों से भरा धागा बांधती हो तो एक हूक पलट आती है कि इस रस्म को उलट दूं और तुम्हारी कलाई में उसे बांधकर तुम्हारे कदमों में भीतर से खाली होने तक झुका रहूं. 2. कुछ स्मृति कुछ प्रलाप ———————- स्मृति मानो यातना गृह में एक सुराख, कभी धूप का टुकड़ा सरक आता है कभी

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एक प्योंली, एक बुरांस

जिस दिन भी चाहेगा कोई दे दूंगी उसको चौखंभा के पीछे से निकला  पूर्णिमा का चांद, आंगन के कोने में खिले आडू के बैंगनी फूल, मोनॉल के रंगीन परों के साथ रूपिन के बर्फीले पानी में  बहा दूंगी सांसें दो चार ही बची हों चाहे, वापसी करूंगी हेमंत में झरी पत्तियों के रिक्त स्थान में तुम्हारे पांच अपने पांच तत्वों के साथ, कहीं ऊंचे पहाड़ों में खिलेंगे दोनो इसी वसंत में एक प्योंली एक बुरांस बनकर.

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प्रेम कविता

जिनके जीवन में प्रेम कुछ कम होता है वे लिखते हैं कविताएं प्रेम पर. खोजते हैं अपने प्रेमी को, प्रेमिका को, उन्हीं कविताओं में कहीं. विचलित होते हैं तो बनती हैं सहारा वही प्रेम कविताएं.  जो खो देते हैं प्रेम जीवन में वे लिखते हैं कविताएं प्रेम पर.  करते हैं जीवंत अपने प्रेम को कविता से, बंधा जाती हैं ढांढस वही प्रेम कविताएं.  और जिनके जीवन में होता है प्रेम सदैव, वे नहीं लिखते कविताएं प्रेम पर. वे हो जाते हैं साक्षात प्रेम कविता.

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केवल मां ही

1. केवल मां हीडा.अनीता पंडा ‘अन्वी’ शीत की ठिठुरन मेंरजाई की गरमाहट सी,कोहरे और धुंध मेंसूरज की किरणों सी,चाय की प्याली मेंघुलती गुड़ की मिठास सी,जगाती मनुहार करकेवल मेरी मां. सारे दर्द और ग़म कोछिपा प्याज के परतों में,देने गर्म रोटियों कोभुलाती जलन हाथों की,मेरी एक मुस्कान कोसहेज लेती आंखों में,पूरे करने मेरे सपनों कोझिड़की

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आओ कुछ बात करें

आओ कुछ बात करेंथके हुए आदमी से एकांत की,क्लांत-से इस देश की, इस प्रांत की.आओ कुछ बात करें. समुदाय के बिगड़े हुए नसीब कीईसा के सलीब की,उस पर झूलते इतिहास की,संवेदना की लाश की.घुटी हुई आवाज़ कीसड़े-गले समाज की,ख़ूनी फव्वारे उड़ातेदानवों के राज की,आओ कुछ बात करें. आओ कुछ बात करें,डूबते संस्कार कीमूल्यों से बलात्कार

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