ईशरा! अंदर आओ
आपको एक बहुत भोली कविता से परिचित करवाते हैं. इस कविता की ये पंक्तियां मेरी पिछली पीढियों द्वारा विकसित की गयी लुप्त होती स्थानीय भाषा में उस आश्वासन से संवाद की कोशिश है, जिसे हम-आप शिव कहते हैं. दुनिया के लिए यह मंदिरों में रहता होगा लेकिन मेरे लोग तो वक्त की किसी बेनाम तारीख […]