Memoirs

काले देवता

यह उन दिनों की बात है जब मैं मलेशिया में कार्यरत था, मुझे अपने कार्यालय के द्वारा सायबर जाया में एक परियोजना पर काम करने का अवसर मिला था. परिवार से कोसों दूर मैं वहां पर अकेला था क्योंकि बच्चे की पढ़ाई व पत्नी का कार्यक्षेत्र सिंगापुर में होने के कारण मेरा परिवार मलेशिया में […]

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मैथिलीशरण गुप्त: साधारण व्यक्ति, असाधारण लेखनी

बचपन से दद्दा जी की कविताएं अपने हिंदी पाठ्यक्रम में पढ़ती रही. उनकी कविताओं में एक ऐसी सहजता, एक ऐसा आकर्षण था कि वे अनायास ही मानस पटल पर स्वतः अंकित होकर कंठस्थ हो जाया करती थीं. चाहे वह ‘मां कह एक कहानी हो’, ‘चारु चंद्र की चंचल किरणें’ हो, ‘नर हो न निराश करो

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धर्मयुग और धर्मवीर भारती

जब बहुत छोटा था तब से अपने पूज्य पिता पद्म भूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास के आवास भारती-भवन में नवनीत, कादम्बिनी, ज्ञानोदय (पुराना) साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग, नईधारा जैसी अनेक पत्र-पत्रिकाएं उनकी टेबल पर सजी देखता और इंतज़ार यह रहता कि पूज्य पिता भोजन के लिये उस भव्य भवन की पहली मंज़िल पर जाएं और कैसे तब

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तुम क्या करेगा फोटू लेकर?

‘फोटू…फोटू…फोटू! तुम क्या करेगा फोटू लेकर?’ वे मौज-मस्ती के दिन थे. युवावस्था के दिन. सन् 1970-71 के थे शायद. तब स्नातक प्रथम वर्ष का छात्र था. पटना महाविद्यालय में मित्रों की टोली थी. खूब धमाल रहता था वहाँ. ग्यारह बजते-बजते सारी कक्षाएँ समाप्त, फिर सारा दिन अपना और रंग पूरी जमात का. एक दिन प्राचार्य महोदय ने एक

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