Poems

बिल्ली को मिला ज्ञान

बिल्ली बैठी कार में,घूम रही बाजार में.पीली उसकी ड्रेस थी,जिसपर बढ़िया प्रेस थी.घुंघराले से बाल थे,और होंठ भी लाल थे.चश्मा काला गोल था, ज्यादा जिसका मोल था.मोबाइल था हाथ में,लगी किसी से बात में.बातों में मशगूल वो,भूली ट्रेफिक रूल वो.आड़े फिरकर रस्ते में,रोका ट्रेफिक दस्ते ने,हवलदार से लड़ गई,जिद्द पर अपनी अड़ गई.हुई क्रोध से […]

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दुकान गोलगप्पे की..

बंदर जी ने गोलगप्पे कीदुकान है एक लगाई.चूहे जी ने बोहनी कीफिर भालू की बारी आई.सियार ने आ कर पूछाएक बताओ कितने की?उसने उंगली से हिसाब लगायाऔर कहा अठन्नी की. ट्रापिक पुलिस बन बिल्ली आईकहा- ‘किसने यह गुस्ताखी की?’बीच सड़क पर दुकान लगाईकानून तोड़ने की गलती की.बंदर ने भी आंखें दिखलाईकहा शेर ने आज्ञा दी.सड़क

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की दो बाल कविताएं

1. सूरज और कलियां सात रंग के घोड़ों पर चढ़ सज- धज सूरज आया. उपवन में सोयी कलियों को उसने यूं समझाया. प्यारी कलियो आंखें खोलो, उठा रात का पहरा. सबका ही मन मोह रहा है यह शुभ समय सुनहरा. सबको ही सुख बांट रही है मनभावन पुरवाई. चंचल पंख हिलाती तितली प्यार बांटने आई. कलियो! तुम मुस्कान बिखेरो, हंसकर साथ निभाओ. औरों को कुछ खुशी बांटकर जीवन का सुख पाओ.   2. जीवन

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